जिन्हे कभी किसान नहीं माना,
कभी खालिस्तानी तो कभी पाकिस्तानी, कभी विदेशी फंडिंग, कभी राष्ट्रिय सुरक्षा के लिए ख़तरा और ना जाने कैसे कैसे बदनाम किया गया!
तमाम गोदी मिडिया (अनऑफिसल भाजपा प्रवक्ता) और भाजपा नेता दिन रात टीवी पर एक भी बात कहते रहे की किसान तो खुश है और इन तीन कृषि कानूनों का समर्थन कर रहे है, इसके लिए खेतो में कुछ कलाकारों को किसान के भेष में बिठाकर उनसे बाइट लेकर वो भी टीवी पर दिखाया गया की कैसे इस देश का किसान इन तीन कृषि कानूनों के साथ है।
कृषि मंत्री भी ट्वीट कर बताते रहे की किसान यूनियन (उनके हिसाब से यूनियन) के लोग इस बिल के साथ है और मंत्री जी से भेंट कर मोदी जी और कृषि मंत्री का धन्यवाद भी कर रहे है किसानों के हित में ये बिल लाने के लिए।
इन सबके बावजूद भी जब आंदोलन बढ़ता ही रहा था फिर गन्दी चालें भी चली गई, किसानों की हत्या, अपने आदमियों को किसान आंदोलन के बीच भेजकर उनसे गलत काम करवाना, खालिस्तान समर्थन में कुछ बुलवाना और अलग अलग तरीके से आंदोलन को तोड़ने की कोशिश।
खूब डराया गया, खूब बदनाम किया गया, हत्याएं भी शुरू कर दी फिर भी आंदोलन कमजोर नहीं पड़ा।
खुद मोदी और उनकी केबिनेट के लोग बोल रहे थे की किसान तो खेत में आंदोलन तो कुछ लोग कर रहे है बस और वो किसान भी नहीं है, कुछ सौ या हजार लोग ही इन बिलों के विरोध में आंदोलन कर रहे है बाकि तो पूरे देश के किसान खुश है।
ऐसे में ऐसी क्या मजबूरी हो गई की मोदी जी बिल वापस लेने की घोषणा कर दी?
जिस व्यक्ति ने नोटबंदी में पुराने नोट बदलवाने के लिए एक दिन भी नहीं बढ़ाया उसने तीनों कृषि बिल वापस क्यों ले लिए?
अब सब एक ही बात बोल रहे है की चुनाव है इसीलिए हार के डर से कृषि बिल वापस ले लिए!
अगर आप भी ऐसा ही सोच रहे है तो ये आपकी ग़लतफ़हमी है।
खुद मोदी को भी पता है की 700 से अधिक किसान शहीद हो गए, एक साल से आंदोलन कर रहा किसान, सरकार की तरह तरह की यातनाएं सहने वाला किसान अगर बिल वापस भी ले लिए तो भी मोदी को इस बार तो वोट नहीं देगा, इसके उलट मोदी समर्थक लोग भी थोड़ा मोदी से नाराज होंगे इन बिलों को वापस लेने से ये सब जानते हुए भी मोदी ने ये तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा क्यों की?
अब आते है असली मुद्दे पर।
ये बात सही है की किया ये सब कुछ चुनावों के चलते ही है, लेकिन इसलिए नहीं की किसान भाजपा को वोट देंगे। क्योंकि जब तक EVMs (मशीन) है तब तक मोदी को किसी के वोट को जरुरत नहीं है वो बिना वोट भी जायेगा।
अब आपके मन में दो सवाल आ रहे होंगे:
1. जब मशीन से ही जीतना है तो फिरकृषि कानून वापस लेने की जरुरत कहाँ पड़ी
2. मशीन से ही जीत रहे है तो फिर उपचुनाव में क्यों हार गए?
यही सबसे बड़ी चाल है, उपचुनाव में हारकर उन आवाजों को दबाया जाता है जो कहती है मशीन में गड़बड़ी है।
लोकतंत्र में झूंठा ही सही लेकिन चुनावी प्रकिया में जनता का भरोसा बनाये रखना बहुत जरुरी होता है।
पहला सवाल भी अभी जिन्दा है की मशीन से ही जीत सकते है तो फिर कृषि कानून वापस क्यों ले रहे है ये जानते हुए भी किसान वोट नहीं देंगे।
इसका जवाब ऊपर की लाइन में है "लोकतंत्र में झूंठा ही सही......... "
आज पंजाब और हरियाणा में लोग खुलेआम ये नहीं कह पा रहे की वो भाजपा समर्थक है, भाजपा नेताओं को गाँवों में घुसने नहीं दिया जा रहा है, दो साल पहले लोग बड़े शान से भाजपा का झंडा घरों पर लगा रहे थे वो भी सबने उतार लिए, और तो और ऐसा भी सुनने में आया है की भाजपा नेता भी अपनी गाडी से भाजपा के सिंबल हटाकर ही कही आ जा रहे है, क्योंकि जैसे ही बीजेपी का सिम्बल दिखता है किसानों के विरोध का सामना करना पड़ता है।
और ये भी हो सकता था की कोई भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ने तक को तैयार नहीं होता तो ऐसे में मशीन से भी भाजपा कैसे जीत पाती?
यदि इन सभी विरोधों के बावजूद भी मशीन से गड़बड़ी करके चुनाव जीत जाये तो सरेआम ये साबित हो जायेगा की मशीन में गड़बड़ी हुई है, तो जनता को चुनावी प्रकिया पर झूंठा भरोसा बना रहे उसके लिए ये बिल वापस लेने वाली हारकर जीतने वाली चाल चली गई है, ताकि भाजपा की टिकट पर उम्मीदवार खड़ा किया जा सके और फिर मशीन से गड़बड़ी की जा सके, इसके बाद अगर जीत जाए तो सबके मन में यही विचार आएगा की कृषि क़ानून वापस ले लिए इसीलिए लोगो ने भाजपा को वोट दे दिया और वो जीत गए(जबकि हकीकत में ऐसा होगा नहीं) .
तो क्या अब ये मान ले की भाजपा मशीन में गड़बड़ी करके जीत जायेगी?
नहीं! ये नहीं मान सकते, क्योंकि मशीन में गड़बड़ी कुछ प्रतिशत वोट शेयर को इधर उधर करने की होती है, कैसे मानों केंडिडेट A को 10 वोट मिले और केंडिडेट B को 90 वोट मिले ऐसे में अगर २०% वोट शेयर भी ट्रांसफर किया जाता है तो भी A केंडिडेट को 28(10+18) वोट और B केंडिडेट को 72 (90-18) वोट मिलेंगे और EVMs गड़बड़ी के बावजूद भी केंडिडेट A हार जायेगा।
तो कृषि बिल वापस लेकर मशीन में गड़बड़ी कर सके इसकी जमीन तैयार की जा रही है।
उम्मीद है देश की जनता भाजपा का ये खेल समझ पाएगी और इन चुनावों में इन्हे सबक सिखाएगी।