Monday, February 5, 2024

अब पार्टी विद डिफरेंस कहाँ, कौन सुने मेरी व्यथा यहाँ ?

दिल्ली भाजपा यूथ विंग की जनरल सेक्रेटरी Nighat Abbass ने ट्वीट कर पार्टी में अपने साथ हो रहे शोषण पर पीड़ा व्यक्त की है 



उन्हें अपने ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रिय अध्यक्ष JP  नड्डा, भाजपा राष्ट्रिय उपाध्यक्ष BJ panda, राष्ट्रिय सचिव अलका गुर्जर, प्रदेश अध्यक्ष वीरेंदर सचदेवा को टैग करते हुए लिखा है 

"अब पार्टी विद डिफरेंस कहाँ, कौन सुने मेरी व्यथा यहाँ ?

महाभारत में एक नारी के ख़िलाफ़ महापाप और अधर्म पर ज्ञानी और सुधीजन के मौन की परिणिति विध्वंस कारक साबित हुई। आज मेरे साथ भी पार्टी में हो रहे अन्याय और अधर्म पर संबंधित अधिकारियों के मौन के बाद शीर्ष नेतृत्व में बैठे आप ज्ञानी लोगों से मैं प्रार्थना करती हूँ कि यथाशीघ्र मेरी व्यथा और मेरे साथ हो रहे अन्याय और अधर्म पर आप संज्ञान लेंगे और उचित कार्यवाही करेंगे। जी, जी, जी, जी, जी, जी।"



इससे पहले भी ट्वीट कर इशारों में अपनी पीड़ा व्यक्त की थी लेकिन उस समय किसी का नाम भी नहीं लिया था और ना ही किसी टैग किया था लेकिन उनके ट्वीट को देखकर यही समझ आता है की पार्टी के बड़े बड़े नेताओं ने उनके साथ जिस्म का समझौता करने की कोशिश की होगी 



 

Thursday, September 21, 2023

ये क्या कह दिया अमित मालवीय ने ?

ये क्या कह दिया अमित मालवीय ने 



भाजपा आईटी सेल के हेड ने अपने ट्वीट में लिखा है की 
इस ट्वीट को सेव कर लो, ट्वीटर पर चाहे कितना भी हो हल्ला कर लो लेकिन नरेंद्र मोदी कभी इंडिया का प्रधानमंत्री नहीं बनेगा। 


अब यदि अमित मालवीय इस ट्वीट को डीलीट कर दे तो निचे ट्वीट का स्क्रीनशॉट भी है 


Saturday, November 20, 2021

कृषि बिल वापस लेना मोदी का झुकना या एक और गहरी चाल

जिन्हे कभी किसान नहीं माना, 

कभी खालिस्तानी तो कभी पाकिस्तानी, कभी विदेशी फंडिंग, कभी राष्ट्रिय सुरक्षा के लिए ख़तरा और ना जाने कैसे कैसे बदनाम किया गया!  

तमाम गोदी मिडिया (अनऑफिसल भाजपा प्रवक्ता) और भाजपा नेता दिन रात टीवी पर एक भी बात कहते रहे की किसान तो खुश है और इन तीन कृषि कानूनों का समर्थन कर रहे है, इसके लिए खेतो में कुछ कलाकारों को किसान के भेष में बिठाकर उनसे बाइट लेकर वो भी टीवी पर दिखाया गया की कैसे इस देश का किसान इन तीन कृषि  कानूनों के साथ है।  

कृषि मंत्री भी ट्वीट कर बताते रहे की किसान यूनियन (उनके हिसाब से  यूनियन) के लोग इस बिल के साथ है और मंत्री जी से भेंट कर मोदी जी और कृषि मंत्री का धन्यवाद भी कर रहे है किसानों के हित में ये बिल लाने के लिए।  

इन सबके बावजूद भी जब आंदोलन बढ़ता ही रहा था फिर गन्दी चालें भी चली गई, किसानों की हत्या, अपने आदमियों को किसान आंदोलन के बीच भेजकर उनसे गलत काम करवाना, खालिस्तान समर्थन में कुछ बुलवाना और अलग अलग तरीके से आंदोलन को तोड़ने की कोशिश।  

खूब डराया गया, खूब बदनाम किया गया, हत्याएं भी शुरू कर दी फिर भी आंदोलन कमजोर नहीं पड़ा।  

खुद मोदी और उनकी केबिनेट के लोग बोल रहे थे की किसान तो खेत में आंदोलन तो कुछ लोग कर रहे है बस और वो किसान भी नहीं है, कुछ सौ  या हजार लोग ही इन बिलों के विरोध में आंदोलन कर रहे है बाकि तो पूरे देश के किसान खुश है।  

ऐसे में ऐसी क्या मजबूरी हो गई की मोदी जी बिल वापस लेने की घोषणा कर दी?

जिस व्यक्ति ने नोटबंदी  में  पुराने नोट बदलवाने के लिए एक दिन भी नहीं बढ़ाया उसने तीनों कृषि बिल वापस क्यों ले लिए?

अब सब एक ही बात बोल रहे है की चुनाव है इसीलिए हार के डर से कृषि बिल वापस ले लिए!

अगर आप भी ऐसा ही सोच रहे है तो ये आपकी ग़लतफ़हमी है।  

खुद मोदी को भी पता है की 700 से अधिक किसान शहीद हो गए, एक साल से आंदोलन कर रहा किसान, सरकार की तरह तरह की यातनाएं सहने वाला किसान अगर बिल वापस भी ले लिए तो भी मोदी को इस बार तो वोट नहीं देगा, इसके उलट मोदी समर्थक लोग भी थोड़ा मोदी से नाराज होंगे इन बिलों को वापस लेने से ये सब जानते हुए भी मोदी ने ये तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा क्यों की?

अब आते है असली मुद्दे पर।  

ये बात सही है की किया ये सब कुछ चुनावों के चलते ही है, लेकिन इसलिए नहीं की किसान भाजपा को वोट देंगे। क्योंकि जब तक EVMs (मशीन) है तब तक मोदी को किसी के वोट को जरुरत  नहीं है वो बिना वोट भी जायेगा। 

अब आपके मन में दो सवाल आ रहे होंगे:

1. जब मशीन से ही जीतना है तो फिरकृषि कानून वापस लेने की जरुरत कहाँ पड़ी 

2. मशीन से ही जीत रहे है तो फिर उपचुनाव में  क्यों हार गए?

यही सबसे बड़ी चाल है, उपचुनाव में हारकर उन आवाजों को दबाया जाता है जो कहती है मशीन में गड़बड़ी है।  

लोकतंत्र में झूंठा ही सही लेकिन चुनावी प्रकिया में जनता का भरोसा बनाये रखना बहुत जरुरी होता है।  

पहला सवाल भी अभी जिन्दा है की मशीन से ही जीत सकते है तो फिर कृषि कानून वापस क्यों ले रहे है ये जानते हुए भी किसान वोट नहीं देंगे।  

इसका जवाब ऊपर की लाइन में है "लोकतंत्र में झूंठा ही सही......... "

आज पंजाब और हरियाणा में लोग खुलेआम ये  नहीं कह पा रहे की वो भाजपा समर्थक है, भाजपा नेताओं को गाँवों में घुसने नहीं दिया जा रहा है, दो साल पहले लोग बड़े शान से भाजपा का झंडा घरों पर लगा रहे थे वो भी सबने उतार लिए, और तो और ऐसा भी सुनने में आया है की भाजपा नेता भी अपनी गाडी से भाजपा के सिंबल हटाकर ही कही आ जा रहे है, क्योंकि जैसे ही बीजेपी का सिम्बल दिखता है किसानों के विरोध का सामना करना पड़ता है।  

और ये भी हो सकता था की कोई भाजपा की टिकट  पर चुनाव लड़ने तक को तैयार नहीं होता तो ऐसे में मशीन से भी भाजपा कैसे जीत पाती?

यदि इन सभी विरोधों के बावजूद भी मशीन से गड़बड़ी करके चुनाव जीत जाये तो सरेआम ये साबित हो जायेगा की मशीन में गड़बड़ी हुई है, तो जनता को चुनावी प्रकिया पर झूंठा भरोसा बना रहे उसके लिए ये बिल वापस लेने वाली हारकर जीतने वाली चाल चली गई है, ताकि भाजपा की टिकट पर उम्मीदवार खड़ा किया जा सके और फिर मशीन से गड़बड़ी की जा सके, इसके बाद अगर जीत जाए तो सबके मन में यही विचार आएगा की कृषि क़ानून वापस ले लिए इसीलिए लोगो ने भाजपा को वोट दे दिया और वो जीत गए(जबकि हकीकत में ऐसा होगा नहीं) . 

तो क्या अब ये मान ले की भाजपा मशीन में गड़बड़ी करके जीत जायेगी?

नहीं! ये नहीं मान सकते, क्योंकि मशीन में गड़बड़ी कुछ प्रतिशत वोट शेयर को इधर उधर करने की होती है, कैसे मानों केंडिडेट A को 10 वोट मिले और केंडिडेट B को 90 वोट मिले ऐसे में अगर २०% वोट शेयर भी ट्रांसफर किया जाता है तो भी A केंडिडेट को 28(10+18) वोट और B केंडिडेट को 72 (90-18) वोट मिलेंगे और EVMs  गड़बड़ी के बावजूद भी केंडिडेट A हार जायेगा।  

 तो कृषि बिल वापस लेकर मशीन में गड़बड़ी कर सके इसकी जमीन तैयार की जा रही है।  

उम्मीद है देश की जनता भाजपा का ये खेल समझ पाएगी और इन चुनावों में इन्हे सबक सिखाएगी। 


Monday, October 18, 2021

गांधी जी और सावरकर के माफीनामे का सच - The real story of Gandhi ji and Savarkar

गांधी करुणामय थे, सदाशय थे। 

The real story of Gandhi and Savarkar

वे महान आत्मा इसीलिए कहलाए कि उन्होंने ने आततायियों को भी इज़्ज़त बख़्शी। उनको भी, जो अलग रास्ते पर चले। 

लंदन में 1909 में सावरकर ने गांधीजी से उनके विचारों पर तकरार की थी। 

बरसों बाद, जब सावरकर कालकोठरी से अंगरेज़ों के सामने गिड़गिड़ा रहे थे तो गांधीजी ने अंगरेज़-राज द्वारा घोषित दया-घोषणा का लाभ सावरकर को भी मिले, ऐसी अपील की। 

यह उनकी दरियादिली थी, जिसे सावरकर को गांधीजी के आशीर्वाद सरीखा बताया जा रहा है। 

रक्षामंत्री ने तो सावरकर के माफ़ीनामों के पीछे भी गांधी को खड़ा कर दिया। यह जाने बग़ैर कि गांधीजी ने लिखकर सावरकर को स्वातंत्र्य-वीर नहीं, स्वातंत्र्य-विरोधी ठहराया था। 

सही है कि गांधीजी ने अपने साप्ताहिक 'यंग इंडिया' के 26 मई, 2019 के अंक में सावरकर की रिहाई की सिफ़ारिश की। मगर साफ़-साफ़ यह कहते हुए कि — "दोनों सावरकर भाइयों ने अपने राजनीतिक विचारों को व्यक्त कर दिया है और दोनों ने कहा है कि वे किसी भी क्रांतिकारी विचार का समर्थन नहीं करते हैं और यह भी कि यदि उन्हें छोड़ दिया जाता है तो वे सुधार क़ानून के तहत काम करेंगे ... दोनों साफ़ कहते हैं कि वे अंगरेज़ों के राज से स्वतंत्रता नहीं चाहते। बल्कि, इससे उलट, वे अनुभव करते हैं कि भारत का भविष्य अंगरज़ों के सहयोग से बेहतर सँवारा जा सकता है ..."।  

गांधीजी के इस कथन को संघ-विचारक और नेता छिपा जाते हैं। वे यह भी नहीं बताते कि रिहाई के बाद सावरकर ने क्या कभी अंगरेज़ों के ख़िलाफ़ आंदोलन छेड़ गांधीजी को ग़लत साबित करने की चेष्टा की? 

सचाई यह है कि सावरकर गांधीजी की हत्या के षड्यंत्र में शरीक़ पाए गए थे। 

हत्याकांड की जाँच के लिए भारत सरकार द्वारा गठित आयोग ने अपने अंतिम निष्कर्ष में "सावरकर और उनकी मंडली (ग्रुप)" को गांधीजी की हत्या के षड्यंत्र का गुनहगार ठहराया गया। 

नए तथ्यों के रोशनी में पहले की जाँच — जिसके फलस्वरूप गोडसे को फाँसी हुई थी — को आगे बढ़ाते हुए भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जेएल कपूर को उस षड्यंत्र की जाँच का ज़िम्मा सौंपा था। कपूर कमीशन ने गवाहों और दस्तावेज़ों की लम्बी पड़ताल के बाद यह निष्कर्ष व्यक्त किया: 

“All these facts taken together were destructive of any theory other than the conspiracy to murder by Savarkar and his group.” 

भावार्थ: सभी तथ्यों का संज्ञान एक ही बात साबित करता है कि (गांधीजी की) हत्या का षड्यंत्र सावरकर और उनके समूह ने रचा। 

पता नहीं अब किस मुँह से उन्हीं सावरकर को गांधीजी की ही ओट देकर इज़्ज़त दिलवाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। यह सिलसिला नया नहीं है। 2014 से इसकी गति बढ़ी। मगर अब तो संविधान की शपथ लेकर आए मंत्रियों तक को इस दुष्प्रचार में झोंका जा रहा है। 

 

Text from twitter thread by Om thanvi (@omthanvi)
Link: https://twitter.com/omthanvi/status/1449954524324524033


Saturday, July 3, 2021

दो जमींदारों की कहानी

 एक गाँव में दो जमींदार थे, एक के पास 10 बीघा जमीन थी, तो दूसरा 500 बीघा जमीन का मालिक था।  

दोनों ही अपनी अपनी जगह मेहनत करते और अच्छी फसल तैयार करते। 

एक साल पानी की कमी के कारण चारों तरफ फसलें  बर्बाद हो रही थी लेकिन 10 बीघा जमीन वाले जमींदार ने इस खतरे को समय पर भांप लिया और उसके अनुसार तैयारी शुरू कर दी, फिर चाहे पानी का भंडारण हो या बूँद बूँद सिंचाई और अगर बारिश आये तो उस पानी का भी अलग से भंडारण ताकि समय पर उसे भी काम लेकर फसल को सूखने से बचाया जा सके और अच्छी पैदावार हो सके। 

वहीँ दूसरी तरफ 500 बीघा जमींन वाला मालिक अपने घमंड में चूर रोज नए नए कपडे पहनकर अकड़ से गाँव में घूमता और यदि कोई उसे कहता की 

"भाई देख दूसरे जमींदार को कैसे उन्हें पहले से सारी व्यवस्था ली तुम भी कुछ तैयारी  करो"

तो वो कहने वाले की हंसी उड़ाते हुए उस छोटे जमींदार पर भी ताना मारता। 

समय निकल गया बड़े जमींदार ने पहले से कोई बंदोबस्त नहीं किया तो फसल सूखने  लग गई, थोड़ा बहुत जो उसका इंतजाम था उससे सारी फसल को बचाया नहीं जा सकता था।  

अब समय आया फसल कटाई का और अनाज निकलवाने का, छोटे जमींदार की सूझबूझ से उनकी फसल बच गई और शानदार फसल तैयार हुई तो उसके यहाँ 10 बीघा में 50 बोरी (50 क्विंटल) अनाज हुआ, उधर 500 बीघा वाले की आधी से ज्यादा फसल पानी की कमी से सूख गई, जो बची उसमे भी कुछ हिस्से में हल्का अनाज निकला और कुछ हिस्सा जिसे  वो बचा पाया में शानदार अनाज निकला और उसके यहाँ भी 90 बोरी (90 क्विंटल) अनाज निकला। 

सारे गाँव में ये चर्चा होने लगी की कैसे छोटे जमींदार ने समय रहते सारी  तैयारी कर ली थी तो इस अकाल का भी असर उसकी फसल पर नहीं  हुआ और उसके यहाँ 50 बोरी अनाज हुआ जबकि बड़े जमींदार ने अपनी फसल पर ध्यान नहीं दिया और उसके यहाँ बहुत सी फसल सूख गई, नष्ट हो गई।  

अब बड़े जमींदार के अहंकार को ये कहाँ पसंद था की लोग छोटे जमींदार तारीफ़ करे और बड़े जमींदार को निक्कमा कहे।  

तो बड़े जमींदार ने अपने सभी मजदूरों को कहा की सारे गांव में हर जगह इस बात का चर्चा करे की इस साल इतने अकाल के बावजूद भी गाँव में सबसे ज्यादा अनाज का रिकॉर्ड उसके नाम है उसके यहाँ 90 बोरी (90 क्विंटल)अनाज हुआ है जबकि बहुत से लोगो के यहाँ 1 बोरी भी नहीं हुआ और तो और उस छोटे जमींदार के यहाँ भी केवल 50 बोरी (50 क्विंटल) बोरी ही अनाज हुआ है। 

जब उठते बैठते सब जगह हर व्यक्ति यहीं सुनने को मिलने लगा की सबसे ज्यादा अनाज बड़े जमींदार के यहाँ ही हुआ है लोगो की जुबान पर यही बात चढ़ गई की इस बार  बड़े जमींदार ने अकाल को भी हरा दिया और उसके यहाँ इतना अनाज हुआ जितना किसी के यहाँ नहीं हुआ।  

लोग असली बात को सोच ही नहीं पाते थे की उसके यहाँ 500 बीघा में 90 क्विंटल अनाज  हुआ है जबकि छोटे जमींदार  महज 10 बीघा में 50 क्विंटल अनाज हुआ है।  

गाँव के लोग भोले थे उनके सामने जिस तरह की बात पूरे दिन होती सुनाई देती उससे आगे वो सोच भी कहाँ पाते थे और बड़ा जमींदार उसी अकड़ से गाँव में घूमता और अपनी वाह वाही सुनता की कैसे अकाल के बावजूद  भी उसके यहाँ सबसे अधिक अनाज हुआ है। 

जबकि वो खुद और उसके मजदूर भलिभांति ये बात जानते थे की उस बड़े जमींदार की अयोग्यता के कारण उनकी नजरों के सामने आधी से ज्यादा फसल सूख कर ख़त्म हो गई और वो उस सूखती फसल को बचाने के लिए कुछ नहीं कर पाए क्योंकि उस बड़े जमींदार ने समय रहते छोटे जमींदार की तरह इंतजाम नहीं किया था। 

 

नोट:ये कहानी काल्पनिक है, इसे मोदी सरकार के टीकाकरण अभियान से जोड़कर ना देखा जाए। धन्यवाद 

 

Friday, April 30, 2021

रोहित सरदाना की मौत भी चढ़ गई TRP की भेंट

आज अचानक से सोशल मिडिया पर एक पोस्ट देखने को मिली हिंदी समाचार जगत के दिग्गज पत्रकार रोहित सरदाना की कोविड की वजह से मृत्यु हो गई।  

एकदम से ये पोस्ट दिखी तो यकीन नहीं कर पाया, तुरंत आज तक का ट्विटर हेंडल खोला (वह प्रतिष्ठान जहाँ  रोहित सरदाना काम करते थे) वहां पर ऐसे कोई पोस्ट नहीं थी।  

तुरंत आजतक चैनल खोला वहां पर ऐसी कोई खबर नहीं दिखाई जा रही है।  

Rohit Sardana
फोटो क्रेडिट : रोहित सरदाना ट्विटर प्रोफ़ाइल

मैं पोस्ट करने से डर  रहा था की कही ये खबर अफवाह तो नहीं है किसी ने ऐसे ही उड़ा दी होगी, लेकिन खबर पर यकीन भी करना जरुरी था क्योंकि ये पोस्ट किसी और ने नहीं बल्कि Zee  News  के पत्रकार सुधीर चौधरी की थी तो ऐसा हो नहीं सकता इतना जिम्मेदार व्यक्ति अफवाह के आधार पर कोई पोस्ट करेगा।  

मन मानने को तैयार नहीं था, इधर सोशल मिडिया पर रोहित सरदाना को श्रदांजलि देने के मेसेज की बाढ़ सी आ गई, फिर आजतक चैनल को देखा, फिर से आजतक के ट्विटर हेंडल को चेक किया कही कोई जिक्र तक नहीं था, मानो उन्हें पता ही नहीं हो या उन्हें इसकी कोई परवाह ही नहीं हो।  

सोशल मिडिया पर आवाज भी उठने लग गई की ये कैसा चैनल ही जो अपने पत्रकार की मृत्यु की खबर से ज्यादा एग्जिट पोल दिखाने को महत्त्वपूर्ण मानता है, लोग आजतक को लानत भेजने लग गए, लगभग एक घंटे से भी ज्यादा समय बीत गया पर आजतक अपनी मस्ती में मस्त था। 

फिर अचानक से आजतक के ट्विटर हेंडल पर भी पोस्ट आई और आजतक पर एक वीडियो क्लिप भी चलाई गई जिसमे रोहित सरदाना को श्रदांजलि दी जा रही थी, बैकग्राउंड में सिसकियों वाला साउंड डाला गया, फिर आगे क्लिप में दिखाया गया एंकर जो ये खबर दे रहे थे वो रो रहे थे, बोलते बोलते उनका गाला भर रहा था।  नीचे आजतक का वो वीडियो है आप खुद भी देखिये।  

अब मैं इसके पीछे की कल्पना कर रहा हूँ की आजतक के स्टूडियों में क्या हुआ होगा उस समय (परिस्थितियो के आधार पर ये मेरी एक कल्पना मात्र है अगर इसका हकीकत के साथ मेल होता है तो ये महज एक संयोग होगा)

स्टूडियों में खबर आई होगी, रोहित सरदाना जी नहीं रहे 

जिसे करंट खबर चलानी होती है (आज तक सबसे तेज) उसने ये हेडलाइन टाइप करना शुरू कर दिया होगा इतने में डायरेक्टर साहब (मालिक) का आदेश आ गया होगा 

रूको, अभी खबर नहीं चलानी है

इसके बाद जिस तरह से ये क्लिप बनाई गई है तो ऐसा हुआ होगा की 

आदेश दिया गया, शानदार क्लिप तैयार करो, एंकर को बैठाया गया होगा, उसे रोने की एक्टिंग करते हुए ये समाचार बोलने को कहा गया होगा।  

लाइट, कैमरा, एक्शन 

और शुरुआत 

क्या पता कई बार रीटेक भी हुआ होगा, कट  कट  कट ओवरएक्टिंग ज्यादा हो गई, रोने में फिलिंग नहीं आई वगैरह वगैरह .... 

इनके सबके बाद ये सभी क्लिप दी गई वीडियो एडिटर को, और वीडियो एडिटर ने शानदार बैकग्राउंड  म्युजिक और सिसकिया डाली गई, कई बार डायरेक्टर साहब ने देखा होगा कुछ मोडिफिकेशन भी करवाया होगा, आखिर में शायद ऐसे कुछ  कहा होगा 

शाबाश, शानदार अब तैयार हुई है शानदार क्लिप 

अब चलाओ मस्त TRP  आएगी 

और फिर ये क्लिप चली होगी 

अगर सच में ऐसा ही स्टूडियों में हुआ होगा तो

जिस संस्थान ने अपने वरिष्ठ पत्रकार की मृत्यु की खबर को भी अपनी TRP  की भेंट चढ़ा दी उस संस्थान से क्या उम्मीद करेंगे?

बहुत दुखद मौत को भी TRP की भेंट चढ़ा देना। 

अगर ऐसा नहीं हुआ होगा तो मेरी समझ से बाहर है, ये खबर फलेश करने में आजतक को एक घंटे से भी ज्यादा का समय क्यों लगा।  

दुनिया मैं कुछ भी कही भी होता है उसकी तुरंत सबसे पहले एक टेक्स्ट लाइन फलेश  हो जाती उसके बाद उस पर विस्तार से जानकारी आती रहती है और प्रोग्राम होते रहते है लेकिन इतनी बड़ी खबर को कोई जगह तक नहीं दी गई।  

शायद आजतक को भी ये एहसास था की सभी लोग इस खबर की पुष्टि के लिए आजतक को बार बार देख रहे है तो क्यों ना इतना शानदार वीडियो बनाया जाए जिससे खूब TRP  बटोरी जा सके।  

ईश्वर रोहित सरदाना जी आत्मा  को अपने श्री चरणों में स्थान दे और उनके परिवार को ये बड़ा दुःख सहन करने की शक्ति दे।  

और TRP के भूखे भेड़ियों को थोड़ी सद्बुध्दि दे।




Friday, December 18, 2020

गौमांस की कमी नहीं आने देंगे - मोदी के मुख्यमंत्री प्रमोद सांवत का बयान

एक तरफ भाजपा गौमांस के नाम पर लोगो के घर में घुसकर गुंडागर्दी/हत्या तक कर आती है वही दूसरी तरफ ये भी सुनिश्चित करती है लोगो को खाने के लिए गौमांस की कमी ना हो।  

जी हाँ, आप ये पढ़कर सोच रहे होंगे ये कैसी बकवास है बीजेपी तो हिन्दू धर्म के रक्षा के लिए ही है, भाजपा तो गाय को देवता समझकर पूजा करती है उलटे जो गाय का मांस खाते है उन पर एक्शन लेती है तो ऐसे कैसे हो सकता है।  

लेकिन दुर्भाग्य से ये सच है, यही इन फर्जी हिन्दुवादियों का असली चेहरा है, यकीं नहीं आता तो निचे Press Trust of India का ट्वीट देखिये, इसका स्क्रीनशॉट भी डाल  रहा हूँ क्या पता कल सुबह तक भाजपा अपनी किरकिरी होने पर इस ट्वीट को ही डीलीट करवा दे।  

भारतीय जनता पार्टी के गोआ  के मुख्यमंत्री प्रमोद सांवत ने गोवा में गौमांस की कमी पर ये बयान  दिया है की जल्द ही वो प्रदेश में हो रही गौमांस की कमी को पूरा करेंगे, दूसरे प्रदेशो से गौमांस आयात कर इस कमी को पूरा करेंगे।  

Goa CM Pramod Sawant says his government is aware about beef shortage in state and arrangements are being made to resolve the issue.

 


यही है इन भाजपाइयों का असली चेहरा, पता नहीं इस देश की भोली भाली जनता को ये बात कब समझ में आएगी की ये लोग सत्ता के लिए कुछ भी कर सकते है।  

आपके लिए गाय पूजनीय है तो आपके यहाँ गाय के नाम पर वोट मांगेंगे, गोवा में गाय का मीट खाया जाता है तो वहां पर गाय के मांस के नाम पर वोट मांगेंगे।  

इन लोगो ना गाय से मतलब है, ना हिन्दू धर्म से और ना ही आपकी भावनाओं से इनका उल्लू सीधा होना चाहिए बस वोट मिलने चाहिए वो गौमांस पर मिलेंगे तो ये लोग गौमांस बेचेंगे और वो गाय माता के नाम पर  मिलेंगे तो गाय माता के नाम आपकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करके लेंगे। 


Sunday, November 1, 2020

कपड़ों से पहचाने जा सकते हैं हिंसा भड़काने वाले : PM Narendra Modi

पहले सुनिए  क्या कहा हमारे प्रधानमंत्री जी ने 

कपड़ो से ही पहचाने जा सकते है

अब देखिये गाजियाबाद पुलिस का ये tweet

 

गाजियाबाद पुलिस ने tweet मेंबताया की शातिर चोर को गिरफ्तार किया है औरजो फोटो फोटो में जिन्हें अरेस्ट किया उनमे से एक ने नमो अगेन की टीशर्ट पहन रखी तो ट्विटर यूजर्स ने तुरंत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कही बात को quot करना शुरू कर दिया

गाजियाबाद पुलिस ने ट्वीटर पर लोगो की प्रतिक्रिया देखि तो तुरंत अपने ट्वीट को डिलीट कर दिया 

गाजियाबाद पुलिस ने पता नहीं क्यों ये tweet डीलीट कर दिया, खैर screenshot की सुविधा उपलब्ध है 


 

Sunday, August 16, 2020

स्वतंत्रता दिवस और मैं - उन दिनों SMS के भी पैसे लगते थे

तब मेसेज भेजना आज की तरह फ्री नहीं था, ना ही सबके पास स्मार्टफोन और इंटरनेट होता था।  

उन दिनों SMS के भी पैसे लगते थे, उसमे भी अक्षर ज्यादा हो जाते तो 1 की जगह कई SMS गिने जाते है।  मेरा SMS इतना बड़ा बन ही जाता था की एक में ही दो के पैसे लगते थे, फिर भी हर स्वतंत्रता दिवस पहले से तैयारी करके रखता था और मेरे मोबाइल में जितने नम्बर सेव होते थे सभी को देशभक्ति से भरा शहीदों के गुणगान वाला और तब की सरकार की कमी का कुछ हिस्सा मेरे मेसेज में शामिल होता था जिसे भेजते समय मेरे मन में जो उमंग उत्साह होता था वो शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है।  

 जिसे भी मेरा SMS मिलता वो उसकी प्रशंसा भी करता, मेरे विचारो की तारीफ़ करता या यों  कहे की कई दोस्त तो मेरे SMS का इंतज़ार करते थे की इस बार क्या लिखकर भेजेगा।  

आज भी स्वतंत्रता दिवस था, मेसेज भी फ्री है और लिखकर भेजना भी बहुत आसान है लेकिन मन में वो उत्साह नहीं  था, कुछेक दोस्तों के मेसेज के जवाब के अतिरिक्त किसी को चलाकर मेसेज नहीं भेजा।  

पिछले कुछ साल में बहुत कुछ बदल गया, पहले देशभक्ति का अर्थ वतन से प्यार ही होता था, सत्ता से हर रोज सवाल करते थे, महंगाई पर सरकार के खिलाफ बोलते थे पुतले जलाते थे, यदि कही कोई अवव्यस्था होती थी तो प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते थे ये सब तब देशभक्ति की  श्रेणी में ही आता था। 

अब देशभक्ति के मायने बदल गए, सरकार से सवाल करना देशद्रोह कहलाता  है,सरकार के किसी निर्णय का विरोध करना देश के खिलाफ बोलना होता है, सीमा पर मेरे ही भाई बहन शहीद हो और उनके परिवार को न्याय  दिलाने के लिए बोलने पर उसे शहीदों/सैनिको का अपमान समझा जाने लगा है।  

अब देशभक्ति का अर्थ है दूसरे देश को गालियां निकालों, यदि मैं केवल अपने देश ही प्यार करू तो उसे देशभक्ति में शामिल नहीं किया जाता, जब तक की मैं बार बार अपने कथन से पलटने वाली सरकार के अनुसार दूसरे देश को गाली ना निकालूँ, अपने  देश के नागरिकों में से कुछ एक को गद्दार न कह दूँ, या उन्हें पाकिस्तान चले जाओ कहकर धमका  नहीं दूँ, या फिर ये साबित नहीं कर दूँ की वो भारत में जन्म लेकर भी पाकिस्तानी है तब तक मेरी देशभक्ति पर प्रश्नचिन्ह लगा रहता है।  

तो आज मेरा मन विचलित सा था, सवालों से उलझा हुआ था, किसे स्वतंत्रता दिवस की बधाई दूँ, उन्हें जिन्होंने आजादी  गिरवी रखकर गुलाम रहना स्वीकार कर लिया। 

"गुलाम" हाँ, गुलाम ही तो है यदि आप बढ़ती महंगाई पर 5-6  पहले तक बोलते थे और आज नहीं बोल पा रहे तो क्यों न इसे गुलामी कहा जाए।  

जब आपके बच्चे को अच्छी शिक्षा नहीं मिल रही हो, या फिर शिक्षा महंगी हो और आप केवल इसीलिए चुप रहते है की अब सरकार से इस पर सवाल करने का मतलब देश के खिलाफ बोलना है तो फिर ये गुलामी ही तो है।  

और सबसे बड़ी बात आजकल जो एक नई प्रजाति पैदा हुई है जो हर किसी को पकड़कर बोलती है बोल "वन्दे मातरम" यदि कोई तुम्हे पकड़कर कहे की ये बोल और नहीं  बोलो आपके साथ बदतमीजी से लेकर हाथापाई और कई बार हत्या तक की नौबत आ जाए तो कैसे कह सकते हो की तुम आजाद हो, ये तो गुलामी ही हुई ना।  

बस इन्ही सवालों से पूरे दिन जूझता रहा और इस बार का स्वतंत्रता दिवस बीत गया।  

इस बार मैं वो सन्देश नहीं भेज पाया जो हर बार भेजता था। 

उम्मीद है अभी भी मैं देशभक्त ही कहलाऊंगा। 

जय हिन्द 

जय भारत 

वन्दे मातरम


Saturday, June 20, 2020

न वहां कोई हमारी सीमा में घुस आया है और न ही कोई घुसा हुआ है


दो किसान थे, दोनों की जमीन एक दुसरे से सटी हुई थी, दोनों ही अपने आप में काफी सामर्थ्यवान थे
जहाँ दोनों की सीमाए लगती थी वहां कभी कभी दुसरे किसान के बेटे इधर वाले किसान के खेत में घुस आते थे, फिर इधर वाले किसान के बेटे उन्हें समझा देते की भाई सीमा वहां पर आप हमारे खेत में घुस आये हो, कई बार बोलने पर मान जाते थे, कई बार थोड़ी तू तू मैं मैं हो जाती तो कई बार बड़ो को बीच में आना पड़ता लेकिन आखिर बात सुलट जाती थी, दुसरे वाले किसान के बेटे अपने खेत में चले और इधर वाले तो अपने खेत में थे ही।

जिंदगी चलती रही दोनों किसान खूब तरक्की करते रहे।
लेकिन अचानक से दोनों किसानो के बीच सम्बन्ध बढ़ने लगे, उधर वाला किसान इधर वाले किसान के घर आया तो इधर वाले किसान ने अपने बेटो से उस किसान की खूब आव भगत करवाई, उसकी जय जयकार के नारे लगवाये उसे मीठे मीठे पकवान खिलाये, झूला झुलाया, यहाँ तक की अपने बेटो को मजबूर कर दिया उस किसान के चेहरे के मास्क पहनकर उसके सामने बैठकर उसे खुश करने के लिए।

यहाँ तक की घर के एक काम करने वाले के मुहं से उधर वाले किसान के नाम का सही उच्चारण नहीं हुआ तो उसे नौकरी तक से निकाल दिया।
पूरे परिवार ने ये सब किया क्योंकि सबको लगता था की आपसी सम्बन्ध अच्छे हो तो दोनों की किसानो के लिए अच्छा है।

इधर वाला किसान बड़ी शान से सबको बताता कि उधर वाले किसान के साथ उसकी दोस्ती कितनी गहरी है, दोनों की बीच मिलने का सिलसिला जारी रहा।

एक दिन फिर से वैसा ही हुआ जो पहले होता था उधर वाले किसान के बेटे इधर वाले किसान की जमीन में घुस आये, और सदा की तरह इधर वाले किसान के बेटे उन्हें समझाने लगे की आप हमारी जमीन में आ गये हो, बात ज्यादा बढ़ गई और नौबत हाथा पाई पर आ गई, उधर वाले किसान के बेटे आक्रामक हो गए और इधर वाले किसान के कुछ बेटे इस झगड़े में मारे गए।

इधर वाले किसान के बेटे आश्वस्त थे की उनका बाप उधर वाले किसान को सबक सिखाएगा, लेकिन ये क्या इधर वाला किसान तो उधर वाले किसान की भाषा बोलने लग गया।
इधर वाले किसान ने अपने बेटो को कहाँ कि "उधर वाले किसान के बेटे ना तो हमारी जमीन में घुसे है, ना हमारी जमीन पर कब्जा किया है"
अब इधर वाले किसान के बेटे तो वैसे ही अपने परिवार के सदस्य की मौत से दुखी थे, ऊपर से उन्हें ये समझ नहीं आ रहा था की उनके बाप ने उधर वाले किसान की भाषा क्यों बोली, जिस जमीन को सदा वो अपनी समझकर उसकी हिफाजत करते आये उसके लिए उन्ही का बाप ऐसा क्यों बोल रहा है?

अब जब इधर वाले किसान ने जो कहा उसका पता उधर वाले किसान को चला तो वो सीना चौड़ा करके उस जमीन पर अपना हक़ ये बोलकर जताने लग गया की इधर वाले किसान ने खुद कहा की जहाँ पर मेरे बेटे खड़े थे वो जमीन उसकी है ही नहीं।


दुनियाँ से शिकायत क्या करते जब तूने हमें समझा ही नहीं गैरों को भला क्या समझाते जब अपनों ने समझा ही नहीं।

जो शहीद हुए है उनकी  जरा याद करो कुर्बानी
जो शहीद हुए है उनकी  जरा याद करो कुर्बानी

Tuesday, April 7, 2020

सोचो भारत कब मजबूत था?

PM Modi Vs PM Dr. Manmohan Singh
PM Modi Vs PM Dr. Manmohan Singh

एक वो दिन था जब भारत ने यूरोप को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था, जब इटली ने हमारे मछुआरो के हत्यारों सैनिको को इटली बुलाकर वापस नहीं भेजा तो तात्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने इटली के राजदूत को ही भारत में बंदी बनाकर इटली को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था और जो इटली बोल रही थी की हम सैनिको को वापस इंडिया नहीं भेजेंगे उन्हें झक मारकर वापस भेजना पड़ा.. उसे कहते है देश का सम्मान बढ़ाना, देश के सम्मान के आगे कोई समझोता नहीं

एक आज का दिन है की जिस ट्रंप के लिए अभी 1 महीने पहले ही सब कुछ दांव पर लगा दिया, करोडो रूपये पानी की तरह बहा दिया और आज वही ट्रम्प खुले आम धमकी देता है की यदि भारत Hydroxychloroquine की सप्लाई नहीं करता है तो परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे, जिस ट्रम्प के लिए भारत का करोडो रुपया बर्बाद कर दिया और मिडिया दिखा रहा था की कैसे मोदी और ट्रम्प दोस्त है और अमेरिका भी भारत के आगे कुछ नहीं वही अमेरिका भारत को धमकी देता है और भारत फिर तुरंत झुक जाता है और कहता है की हम Hydroxychloroquine की सप्लाई अमेरिका को भेज रहे है

सोचो भारत कब मजबूत था?
जब भारत ने इटली को झुकने पर मजबूर कर दिया तब या
आज जब भारत अमेरिका के आगे झुक गया तब?



Saturday, November 9, 2019

क्या कह रहा है अनुभव सिन्हा से ड्राईवर?

ये पहली बार नहीं हुआ है की ड्राईवर ने मेसेज किया हो अनुभव सिन्हा ने उसे सोशल मिडिया पर शेयर किया हो, इससे पहले भी वो ऐसा करते आये है लेकिन इस बार ड्राईवर कुछ ज्यादा ही मेसेज कर रहा है, पता नहीं वो खुद परेशान है या बार बार मेसेज और कॉल से किसी को परेशान करना चाहता है?




इस बार ये सिलसिला 1 नवम्बर से शुरू हुआ जो अभी तक चल रहा है, मैं इस पोस्ट में ड्राईवर  के वो सारे मेसेज आप सबके साथ शेयर  कर रहा हूँ जो अनुभव सिन्हा जी ने अपने ट्विटर हेंडल पर शेयर किये है



My driver just called to say "सर कार नहीं बन रही"
















इतना ही नहीं, ड्राईवर के इतने मेसेज शेयर करने की वजह से लोगो ने सिन्हा जी से सवाल भी किये जिनका जवाब भी उन्हें दिया





 

Friday, November 1, 2019

दिल्ली की बिगड़ती हवा Vs दिल्ली का साफ़ नीला आसमान

इस पोस्ट में जो मुझे लगता है #DelhiAirQuality के बारे में वो लिखने जा रहा हूँ, पूरा पोस्ट जरूर पढना और फिर आपको लगे मैं गलत हूँ तो अपने कमेंट द्वारा मुझे सही करने की कोशिश करना,धन्यवाद।

शुरुआत करते है दीवाली से पहले के कुछ दिनों से, दिल्ली के मुख्यमंत्री @ArvindKejriwal जी और बहुत से लोग रोज दिल्ली के आसमान का नजारा दिखाते हुए फोटो पोस्ट करते थे, और सबको उस पर गर्व होता था की वाह दिल्ली ने पोलुशन के खिलाफ ये जंग भी बड़े हद्द तक जीत ली है।

अरविन्द केजरीवाल को पहले से पता था की सामने दिवाली है, और लोग पटाखे तो जलाएंगे ही और उससे प्रदूषण बढेगा, तो दिल्ली सरकार ने उसका भी हल निकाला, और दिल्ली में सामूहिक दीवाली लेजर वाली बनाने का निर्णय लिया।

तब तक दिल्ली का आकाश बिलकुल साफ़ था, दिल्ली सरकार सहित दिल्ली वाले भी खुश थे, लेकिन कुछ लोग थे जिन्हें इसका दर्द था की क्यों ये कामयाब हो गया इसमें, जो दिल्ली सदा प्रदूषण में नम्बर 1 रहती है उसकी हवा इतनी साफ़ क्यों है, लेकिन उन्हें उम्मीद थी की दीवाली पर पटाखों से कुछ होगा



जिसमे भाजपा के बड़े बड़े नेताओं सहित #LashkarENoida भी शामिल था, और उन्होंने बाकायादा लोगो को इसके लिए उकसाया की पटाखे चलाओ, सबसे बड़ी शर्म की बात खुद देश के प्रधानमंत्री ने मन की बात में पटाखे चलाने की बात कही, यदि सच में वो भारत देश के नागरिको का भला चाहते तो अपने उसी व्यक्तव्य में ये भी बोल सकते थे की जहाँ जहाँ प्रदुषण की समस्या है वहां कम चलाये, या सामूहिक रूप से चलाये, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, अर्थात कहीं ना कहीं ये एक वर्ग यही चाहता था की दिल्ली की हवा जहरीली हो लेकिन दिल्ली वाले अपने लाडले मुख्यमंत्री के साथ थे, लेजर लाईट और सामूहिक दीवाली का कार्यक्रम सफल हो रहा था, दिल्ली की हवा साफ़ थी, और पटाखे भी नहीं चल रहे थे, खुद केजरीवाल जी ने इसके लिए दिल्ली को धन्यवाद के लिए ट्वीट किया था और दिल्ली वालो को सेल्यूट किया

एजेंसियां भी बताती है की इस साल दिल्ली में बहुत कम पटाखे चले, यानि कुल मिलाकर दिल्ली ने कमाल कर दिया. पर तभी उसी दिवाली की रात अचानक से पंजाब और हरियाणा में पराली जलना शुरू होती है, विशेष ध्यान दिया जाए, दीवाली की रात जब पटाखों से प्रदुषण नहीं फैला तो उसके बाद आधी रात से पराली जलना शुरू हुआ, दीवाली का त्यौहार जहाँ सब लोग त्योहार की खुशियाँ मनाने में लगे थे वहां ये कौन लोग थे जो पराली जलाने चले गए? और आखिर क्यों वो दीवाली वाली रात ही गए?

एक बार Steve Jobs ने कहा था "Connect the dots" इन सभी संदर्भो को आपस में जोडिये आपको अपने आप समझ आएगा कितना बड़ा षडयंत्र रचा गया केवल इसीलिए की चर्चा इस पर ना हो की इस बार दिल्ली ने सामूहिक दिवाली मनाकर प्रदूषण के खिलाफ जंग जीत ली बल्कि चर्चा दिल्ली की बिगड़ती हवा पर हो, फिर #LashkarENoida तो है ही जो कारणों पर चर्चा नहीं करेगा बस यही दिखाएगा की दिल्ली की हवा में सांस नहीं लिया जा रहा, वो नहीं बताएगा की इसके लिए कौन जिम्मेदार है



अच्छा ये पराली जलाने के लिए दिवाली की रात का इन्तजार क्यों किया गया? दीवाली के पहले क्यों नहीं जलाई? या तो शायद हवा का बहाव दिल्ली की तरफ नहीं था, या फिर पहले जला लेते तो वो खुलेआम पटाखे जलाने की बात किस बेशर्मी से करते (हालाँकि वो बेशर्म है कर सकते थे ऐसा भी)

चलो मान लेता हूँ मैं तो आम आदमी पार्टी का समर्थक हूँ तो अरविन्द केजरीवाल सरकार का गुणगान ही करूँगा, आप बताइए आपको क्या लगता है, मैंने जो लिखा है उसमे कौनसा तथ्य गलत है, या केजरीवाल और क्या कर सकता था इस हवा को सुधारने के लिए?