एक भाई का बहन के लिए प्यार और भावनाये जो शब्दों के सहारे बाहर निकल आई
"भाई" ये नाम जब तुम्हारे जहन में आता होगा
तपती दुपहरी में जैसे मिल गयी हो छाँव
ये अहसास दिलाता होगा।
पुरुष की नजरो से निकलती वो धूप झुलसाने वाली
तुझे उनसे बचा पाऊँ यही कोशिश में करता हूँ
उन नजरो की आग जो पहुँचने वाली है तुम तक
रोक तो लेता हूँ उन्हें पर मैं खुद भी डरता हूँ
कब तक संग रहूँगा तेरे,
बचा पाऊंगा में कितनी बार
क्यों तेरा औरत होना ही
बन जाती है तेरी सबसे बड़ी हार
जो उस सुलसती आग से टकरा जाओ
जो चाहती है झुलसाना तुझे
उन्हें बनकर शोला जला आओ
नारी हो ये सुनकर तुम
कब तक अपने कदम रोकती रहोगी
इस पुरुष प्रधान समाज के बंधन
हर बार क्यों तुम ही सहोगी
हूँ साथ तुम्हारे एक दोस्त की तरह,
आओ मिलकर कदम बढ़ाते है
है कुछ तो वजूद तुम्हारा भी
इस दुनिया को अब दिखलाते है
वो सपने वो कभी तुमने भी पाले होंगे
आओ मिलकर उन सपनो को पंख लगाते है
कोशिश तो करे, उड़ान भरकर तो देखे
आखिर कहाँ तक पहुँच पाते है॥
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