सुबह जल्दी उठा और
तैयार हुआ, जयपुर जाना था।
कार बाहर निकाली और
जयपुर के लिए रवाना हो गया, अभी 1-2 किलोमीटर ही चला था कि एक दोस्त का फ़ोन आ गया।
मैंने गाडी एक तरफ रोककर phone अटेंड किया।
"हाय, गुड मोर्निंग!
क्या कर रहा है?" मेरे दोस्त ने तुरंत ये सवाल दाग दिया!
"यार ड्राइविंग कर
रहा था, जयपुर जा रहा हूँ!" मैंने कहा
"कर रहा था, मतलब?"
दोस्त ने कहा
"यार कर रहा था, अब
तेरा phone अटेंड करने के लिए साइड में रोक ली है, गाडी चलाते हुए कोई phone पर
बात थोड़े ही करते है!" मैंने समझाया
तुरंत दोस्त ने एक
लम्बी चौड़ी कहानी सुना डाली, कैसे वो भी कुछ दिन पहले कार से जयपुर गया था और एक ट्रैफिक
सिग्नल पर जब वो हरी बत्ती होने पर पार कर रहा था तो ट्रैफिक पुलिस वाले ने ज्यों
ही जयपुर के बाहर के कार नंबर देखकर उसे
रोक लिया और लाइसेंस दिखने के लिए कहने लगा, दोस्त ने कहा गाडी एक तरफ पार्किंग
करदू फिर दिखा देता हूँ, लेकिन ट्रैफिक पुलिस वाला नही माना, जिद्द करने लगा की
उसे केवल लाइसेंस देखना है और कुछ नहीं। दोस्त ने ज्यों ही लाइसेंस दिया, पुलिस
वाले ने तुरन्त कहा तेरा तो चालान कटेगा तूने लालबत्ती क्रोस की है, मेरे दोस्त ने
बड़ी जिम्मेदारी से कहा की नहीं मैंने हरी बत्ती होने पर पार किया है और मेरी गाडी
से आगे भी गाड़ियां थी तथा पीछे भी गाड़ियां थी जिन्होंने उस बत्ती को पार किया है
तो फिर कैसे आप मुझे अपराधी बना सकते है जब मेरे पीछे वाली कम से कम 10-15 गाड़ियाँ
निकली है तो वो ही कैसे अपराधी हो गया और वो भी तब जब उसने हरी बत्ती क्रोस की है।
आप चाहे तो CCTV फुटेज निकलवाकर तुरंत देख ले दूध का दूध और पानी का पानी हो
जाएगा। अगर फुटेज में मेरी गाडी लालबत्ती पार करती दिखाई देगी तो गाडी को भी यही
छोड़ दूंगा, आपको उपहार कर दूंगा।
पर इन सब दलीलों को
ट्रैफिक पुलिस वाले पर कोई असर नहीं हो रहा था वो तो बस अपनी जिद्द पर अड़ गया की
अब तो तेरा चालन ही होगा, इधर बीच सड़क पर गाडी रोकने से अन्य वाहनों की लम्बी
लम्बी कतारें लग गयी थी, सभी हॉर्न बजा रहे थे, इतने में एक दुसरा गाड़ी वाला आया
ये देखने के लिए कि आखिर हो क्या रहा है, संयोग से वो मेरे दोस्त का जानकार निकला
जब उसने मेरे दोस्त से पूछा क्या हुआ तो उसने सारी हकीकत बताई और मेरे दोस्त के
जानकार ने स्तिथि की समझते हुए ट्रैफिक पुलिस वाले को एक तरफ बुलाया और एक महात्मा
गाँधी की फोटो लगा 100 का नोट उसकी तरफ बढ़ा दिया, ट्रैफिक पुलिस वाले ने सब कुछ
सही कहते हुए बोला, ok अब आप जा सकते है ये लीजिये आपका लाइसेंस।
फिर मेरे दोस्त ने और
आगे बताया की यार तू विदेश में गाड़ी चलाया हुया है यहाँ जयपुर का ट्रैफिक नहीं
देखा तुमने और उस पर भी कोई नियम कायदा नहीं कोई पता नहीं कौन, कब और कहाँ से बीच
में आ जाए तो उसने सलाह दी की जयपुर में ऑटो या कार ले लेना या फिर ड्राईवर को साथ
लेते जाऊं, तो मैंने सोचा चलो यार इन सबसे बचने के लिए अच्छा है पब्लिक
ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करूँ और इससे एक अच्छा अनुभव भी होगा।
मैंने गाड़ी को वहीं
एक दूकान के पास पार्किंग की और बस का इन्तजार करने लगा, रोडवेज की बस आई और मैं
बस में चढ़ गया, मैंने देखा बस में एक महिला परिचालक थी, देखकर बहुत ख़ुशी हुयी की
एक महिला बस में परिचालक है, फिर ये काम बड़ी ही जिम्मेदारी का होता है और कई बार
हिम्मतवाला भी होता है क्योंकि बहुत से यात्री परिचालक से लड़ने झगड़ने लग जाते है
किराए के लिए। मेरे मन में ख्याल आया कितनी बहादुर है ये महिला परिचालक और साथ ही
साथ ख़ुशी भी हुयी की मेरे प्रदेश में महिलाए तरक्की कर रही है। अब वो एक गृहिणी की
छवि से बाहर निकलने की कोशिश कर रही है। इतना ही नहीं मैंने पूरे रास्ते गौर से हर
सवारी जो बस में चढ़ या उतर रही थी की तरफ गौर से देखकर उनके हाव भाव जानने की
कोशिश भी कर रहा था, मैंने पाया की बस में चढ़ने वाली हर महिला सवारी के चहरे पर एक
शकून भरी मुस्कराहट थी एक महिला परिचालक को देखकर, जैसे की उन्हें लग रहा हो की
कोई है जो उनका ख्याल रखेगा, इस तरह का चैन और शकून एक पुरुष परिचालक के साथ
महिलाओं में चहरे पर नजर नहीं आता है।
मैं हमारी सरकार को
मन ही मन धन्यवाद करता रहा जिसने महिला परिचालको की नियुक्तियाँ की। पर इसके
अतिरिक्त कुछ और भी था जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया मैं बार बार खुद से सवाल
करता रहा की आखिर हम कब इन सबसे बाहर निकलेंगे और सोचने को मजबूर करने वाली चीज थी
बस में चिपके हुए विज्ञापन।
पहली नजर पड़ी
विज्ञापन पर जिसमे लिखा था गुप्त रोगों का इलाज शाही दवाखाना
मैंने सोचा सरकारी
बस में इस तरह का विज्ञापन? मैं मानता हूँ बस में विज्ञापन से सरकार को आमदनी होती
है विज्ञापन दाता एक निश्चित राशि के भुगतान के बाद अपने विज्ञापन बस में चिपका
सकता है लेकिन क्या इस तरह के विज्ञापन देकर सरकार इन लोगो को बढ़ावा नहीं दे रही
है? आखिर ये नीम हकीम ये शाही दवाखाने वाले ये किस सरकार से मान्यता प्राप्त है,
इनके पास में कौनसी वैध शैक्षणिक योग्यता है ये सब करने के लिए और जो जड़ी बूंटी या
दवा के नाम पर वो लोग कुछ देते है वो किस सरकार द्वारा authorised है, हजारो सवाल
दिमाग में चल रहे थे, सरकार को तो इन सबको रोकना चाहिए जबकि हो इसका उलट रहा है,
रोकने की बजाय सरकारी संसाधनों पर उनके विज्ञापन चिपका कर जैसे की सरकार उन्हें
खुली अनुमति दे रही हो की हाँ आप कीजिये अपना गोरख धंधा और बनाइये लोगो को मुर्ख।
दूसरा विज्ञापन नजर
आया जिसमे लिखा था, हर प्रकार की समस्या का समाधन ये झाड़फूंक और जादू टोने से
सम्बंधित था बस इन्ही दोनों के 10-12 पर्चे पूरी बस में चिपके हुए थे, फिर वही
सारे सवाल इस विज्ञापन को लेकर मन में आये की क्या हमारी सरकार इन सब बातो को
मान्यता देती है यदि नहीं देती है तो क्या इन्हें विज्ञापन चिपकाने की अनुमति देकर
वो इन लोगो को बढ़ावा नहीं दे रही है?
मैंने सरकार को खूब
कोसा फिर मेरे मन में विचार आया की ऐसा भी हो सकता है की ये बिना किसी परमिसन के
चिपका गए हो और सरकार को इस बारे में पता ही ना हो, तो फिर सवाल खड़ा होता है उन कर्मचारियों
पर जो उस बस में काम करते है, आखिर कब और कौन चिपका गया ये सब स्टीकर, और चिपका
गया तो उन्होंने क्या इसकी शिकायत की, उन विज्ञापनों पर सम्बंधित व्यक्ति का पूरा
पता phone नंबर सब कुछ था, क्या उन लोगो की खिलाफ शिकायत दर्ज हुयी और उसके बाद
रोडवेज कर्मचारियों ने उन विज्ञापनों को हटाया क्यों नहीं?
आखिर कब ये देश
बदलेगा, और कब ये सरकारे जागेगी इन सब चीजो को रोकने के लिए और समाज को सही दिशा
देने के लिए।
धन्यवाद! जय हिन्द!!
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