"क्या आपको सर्दी नहीं लग रही है?"
मेरे इस सवाल का जो जवाब उनसे मिला अचानक मेरी सर्दी गायब हो गई हो और मैं उस शख्श की और देखता रहा जब तक वो मेरी आँखों से ओझल नहीं हो गया।
पिछले माह परिवार सहित माता वैष्णो देवी के दर्शन को गए थे, कटरा से माता वैष्णो देवी दर्शन के लिए चढ़ाई शुरू होती है, कोई पैदल ये चढ़ाई पार करता है तो कोई घोड़े, पालकी या हेलीकॉप्टर से इसे पार कर माता रानी के भवन पहुँच कर माँ वैष्णो देवी के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करता है।
हमारे साथ छोटे बच्चे थे तो हमने घोड़े लेना ठीक समझा और ये चढ़ाई घोड़ो पर बैठकर तय की, माता के भवन पहुँच चुके थे, आरती का समय हो गया था तो 2 घंटे के लिए दर्शन बंद थे, लाइन में लगकर माता रानी को याद करते, धन्यवाद देते समय बीत गया और आख़िरकार माता रानी के दर्शन हो गए, बहुत ही सुखद अनुभव रहा। रात के 11 बज चुके थे, अब बाहर आकर एक रेस्टोरेंट में खाना खाने लगे इतने में तेज बारिश ने अचानक मौसम बदल दिया, जहाँ कुछ देर पहले तक गर्मी लग रही थी वो मौसम अचानक से सर्द हो गया। वैष्णों माता के दर्शन के बाद 3.5 KM की ऊंचाई पर स्तिथ भैंरो बाबा के दर्शन करने की मान्यता है तो खाना खाने के बाद हम सब इस चढ़ाई को चढ़ने के लिए निकल पड़े, रास्ते में फिर बारिश शुरू हो गई, कभी रुकते कभी तेज तेज मंजिल की तरफ बढ़ते जा रहे थे, आधे से ज्यादा रास्ता तय हो चूका था, लेकिन इस बार बहुत तेज हवा और बारिश ने सब को कँपकँपा के रख दिया, हर कोई खुद को सर्द हवा से बचाने के लिए कोई छिपने की जगह ढूंढ रहा था या बैग में जो कुछ ओढ़ने की चीज थी उसका सहारा ले रहा था, हमारे पास भी टॉवल और एक एक एक्स्ट्रा टी-शर्ट थी, जिनमे से कुछ से कुछ को ढका तो कुछ बच्चों को ढकने में काम ली, पर सर्दी फिर भी लग रही थी। मुझे एक दीवार की ओट में बैठने की जगह मिल गई, आरामदायक तो नहीं थी पर सीधी हवा से वो दीवार मुझे बचा रही थी, इतने में मेरी नजर एक परिवार पर पड़ी जो थोड़ी देर पहले ठीक मेरे पास वाली सीट पर खाना खा रहे थे, वो भी सर्दी से काँप रहे थे उनके साथ एक गुड़िया थी वो भी काँप रही उसे मैंने अपने पास बुलाकर अपने सीने से लगाकर हवा से बचाने का प्रयास किया। थोड़ी देर में बारिश कम हुई तो थोड़ी हलचल हुई लोग आगे बढ़ने लगे भैरों बाबा के दर्शन के लिए, हम भी चल पड़े।
एक घुमाव पर मैं कुछ लोगो से आगे निकल रहा था की अचानक मेरी नजर उस नौजवान पर पड़ी जिसकी वजह से ये पोस्ट लिख रहा हूँ।
जहाँ सभी लोग सर्दी से काँप रहे थे वही वो व्यक्ति एक सेंडो बनियान में चल रहा था, मेरे मुहं से अचानक निकल गया
"सभी सर्दी से काँप रहे है और आप बनियान में है, आपको सर्दी नहीं लगती?"
उसका जवाब सुनकर मेरी सर्दी अचानक गायब हो गयी और मेरी आँखों में आंसू थे।
उस युवक ने कहा, "सर्दी तो लगती है सर, लेकिन मेरा बेटा सर्दी से काँप रहा था तो मैंने अपना शर्ट निकालकर उसे उढ़ा (ओढ़ा) दिया।"
कुछ देर तक मैं वही खड़ा खड़ा उसे देखता रहा और सोचता रहा एक पिता अपने संतान के लिए कितना त्याग करता है, कितना सहन करता है।
पिता के त्याग की बहुत कम कहानियाँ देखने को मिलती है, लेकिन इस पिता के त्याग को आप सब तक पहुंचाने का प्रयास किया है यदि अच्छी लगी हो तो जरूर अपने कमेंट से मुझे बताये।
पढ़ने के लिए धन्यवाद
राम किरोड़ीवाल
मेरे इस सवाल का जो जवाब उनसे मिला अचानक मेरी सर्दी गायब हो गई हो और मैं उस शख्श की और देखता रहा जब तक वो मेरी आँखों से ओझल नहीं हो गया।
पिछले माह परिवार सहित माता वैष्णो देवी के दर्शन को गए थे, कटरा से माता वैष्णो देवी दर्शन के लिए चढ़ाई शुरू होती है, कोई पैदल ये चढ़ाई पार करता है तो कोई घोड़े, पालकी या हेलीकॉप्टर से इसे पार कर माता रानी के भवन पहुँच कर माँ वैष्णो देवी के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करता है।
हमारे साथ छोटे बच्चे थे तो हमने घोड़े लेना ठीक समझा और ये चढ़ाई घोड़ो पर बैठकर तय की, माता के भवन पहुँच चुके थे, आरती का समय हो गया था तो 2 घंटे के लिए दर्शन बंद थे, लाइन में लगकर माता रानी को याद करते, धन्यवाद देते समय बीत गया और आख़िरकार माता रानी के दर्शन हो गए, बहुत ही सुखद अनुभव रहा। रात के 11 बज चुके थे, अब बाहर आकर एक रेस्टोरेंट में खाना खाने लगे इतने में तेज बारिश ने अचानक मौसम बदल दिया, जहाँ कुछ देर पहले तक गर्मी लग रही थी वो मौसम अचानक से सर्द हो गया। वैष्णों माता के दर्शन के बाद 3.5 KM की ऊंचाई पर स्तिथ भैंरो बाबा के दर्शन करने की मान्यता है तो खाना खाने के बाद हम सब इस चढ़ाई को चढ़ने के लिए निकल पड़े, रास्ते में फिर बारिश शुरू हो गई, कभी रुकते कभी तेज तेज मंजिल की तरफ बढ़ते जा रहे थे, आधे से ज्यादा रास्ता तय हो चूका था, लेकिन इस बार बहुत तेज हवा और बारिश ने सब को कँपकँपा के रख दिया, हर कोई खुद को सर्द हवा से बचाने के लिए कोई छिपने की जगह ढूंढ रहा था या बैग में जो कुछ ओढ़ने की चीज थी उसका सहारा ले रहा था, हमारे पास भी टॉवल और एक एक एक्स्ट्रा टी-शर्ट थी, जिनमे से कुछ से कुछ को ढका तो कुछ बच्चों को ढकने में काम ली, पर सर्दी फिर भी लग रही थी। मुझे एक दीवार की ओट में बैठने की जगह मिल गई, आरामदायक तो नहीं थी पर सीधी हवा से वो दीवार मुझे बचा रही थी, इतने में मेरी नजर एक परिवार पर पड़ी जो थोड़ी देर पहले ठीक मेरे पास वाली सीट पर खाना खा रहे थे, वो भी सर्दी से काँप रहे थे उनके साथ एक गुड़िया थी वो भी काँप रही उसे मैंने अपने पास बुलाकर अपने सीने से लगाकर हवा से बचाने का प्रयास किया। थोड़ी देर में बारिश कम हुई तो थोड़ी हलचल हुई लोग आगे बढ़ने लगे भैरों बाबा के दर्शन के लिए, हम भी चल पड़े।
एक घुमाव पर मैं कुछ लोगो से आगे निकल रहा था की अचानक मेरी नजर उस नौजवान पर पड़ी जिसकी वजह से ये पोस्ट लिख रहा हूँ।
जहाँ सभी लोग सर्दी से काँप रहे थे वही वो व्यक्ति एक सेंडो बनियान में चल रहा था, मेरे मुहं से अचानक निकल गया
"सभी सर्दी से काँप रहे है और आप बनियान में है, आपको सर्दी नहीं लगती?"
उसका जवाब सुनकर मेरी सर्दी अचानक गायब हो गयी और मेरी आँखों में आंसू थे।
उस युवक ने कहा, "सर्दी तो लगती है सर, लेकिन मेरा बेटा सर्दी से काँप रहा था तो मैंने अपना शर्ट निकालकर उसे उढ़ा (ओढ़ा) दिया।"
कुछ देर तक मैं वही खड़ा खड़ा उसे देखता रहा और सोचता रहा एक पिता अपने संतान के लिए कितना त्याग करता है, कितना सहन करता है।
पिता के त्याग की बहुत कम कहानियाँ देखने को मिलती है, लेकिन इस पिता के त्याग को आप सब तक पहुंचाने का प्रयास किया है यदि अच्छी लगी हो तो जरूर अपने कमेंट से मुझे बताये।
पढ़ने के लिए धन्यवाद
राम किरोड़ीवाल
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