जो कुछ इन दिनों देश में चल रहा है क्या सच में कुछ ऐसा ही है? या कही इन सबके पीछे कोई और कारण है?
मैं भी कुछ दिनों से यही सोच रहा हूँ और मैंने अपने विवेक से जो कल्पना की वो आप सबके साथ शेयर कर रहा हूँ, जो लिख रहा हूँ वो मेरी सोच और मेरी मान्यता है। यदि कुछ गलत हो तो मुझे क्षमा करे मेरा उद्देश्य किसी का दिल दुखाना नहीं है, मैं एक सच्चा राष्टवादी हूँ, देश में नहीं रहता फिर भी खुद के भारतीय होने पर गर्व है और भारत माता के लिए दिल में उतना ही सम्मान और गर्व है जितना देश में बैठे एक देशवासी के दिल में है।
तो चलो शुरुआत यहाँ से करते है!
आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार का एक साल पूरा होने वाला है, पार्टी ने बड़ा जश्न (जैसा की राजस्थान की भाजपा मुख्यमंत्री ने किया) ना करते हुए इसे अपने एक साल में किये गए कामो की उपलब्धि गिनाने में करने का निर्णय लिया था।
सारी तैयारी हो चुकी, शोशल मीडिया टीम जोश के साथ एक एक काम की लिस्ट बनाने में लग गयी, खुद दिल्ली के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, सभी मंत्री अपने अपने विभाग में किये गए कामो की लिस्ट बना चुके ताकि दिल्ली की जनता ने जितने विशवास के साथ आम आदमी पार्टी की सरकार चुनी उन्हें एक साल का हिसाब दे सके।
आखिर जनता ही तो असली मालिक है इस लोकतंत्र की, तो उन्हें हक़ है ये जानने का की एक साल में उनके द्वारा चुनी हुयी सरकार ने क्या किया।
मीडिया में भी इसकी सुगबुगाहट होने लगी, चर्चाये होने लगी की वाह एक साल में इतने सारे काम कर दिए, बाकायदा मेनिफेस्टो उठा कर एक एक बिंदु की जांच करने लगे की कितने वादे पूरे हो चुके कितनो पर काम चल रहा है, बचे हुए कब तक पुरे हो जायेंगे।
जब ये सब तैयारी चल रही थी तो किसी एक सरकार को बहुत बड़ा संकट सामने दिखाई देने लगा, ऐसे सवाल सामने आते दिखाई देने लगे जिनके जवाब उनके पास नहीं है, क्योंकि जवाब के लिए केंद्र सरकार के पास केवल एक ही जवाब है 60 सालों का हिसाब ना देने वाले हमसे हिसाब मांगते है? यानि कुल मिलाकर मोदीजी के पास अपनी सरकार की उपलब्धि गिनाने के लिए कुछ नहीं था, जिन वादो के लेकर भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव में उतरी थी उन सब पर फ़ैल होती नजर आ रही थी, और मोदीजी और भाजपा को ये कतई मंजूर नहीं था की देश की जनता वो अधिकाँश भाग जो सोशल मिडिया पर एक्टिव नहीं है उन तक ये बात पहुँच जाए की मोदी सरकार हर वादे फ़ैल हो चुकी है, चाहे वो फिर महंगाई का हो या पाकिस्तान का मसला, विदेश नीति हो या गिरता हुआ रुपया और सेंसेंक्स हर मुद्दे पर भाजपा सरकार की नाकामी। तो इसे छिपाना तो बहुत जरुरी है। बीजेपी और मोदी जी को डर हुआ की कहीं अब इस पर टीवी स्टूडियो में डिबेट ना होने लगे की अरविन्द केजरीवाल ने एक साल में इतने काम करके दिखा दिए तो अन्य राज्यों की सरकार क्यों नहीं कर सकती, या केंद्र की मोदी सरकार क्यों नहीं कर रही है।
तो मेरा मानना है की अपनी ये चिंता उन्होंने अपने रक्षक दल(मिडिया, नजीब जंग, भीम बस्सी आदि) के सामने रखी और जैसे ही उन्होंने अपनी ये चिंता प्रकट की होगी इन सभी परम भक्त में होड़ लगी नंबर बनाने की, जो सबसे पहले इस मुद्दे से भटकाकर दिखा देगा वही अपनी वफादारी ज्यादा दिखा पायेगा। तो मीडिया की नजर पड़ी JNU पर कन्हैया के उस भाषण पर जिसमे वो पूंजीपति, गरीबी, भुखमरी आदि से आजादी की बात कर रहा था, तो ये कुछ मिडिया वाले जो मोदी भक्त बने बैठे है अपनी कुटिल दिमाग से उस भाषण से बाकी बात काटकर केवल आजादी आजादी को जनता के सामने रखा और वो उसमे कामयाब रहे तुरंत चारो तरफ बाकि सभी मुद्दे भूलकर केवल देशद्रोही और देशभक्त की बाते होने लग गयी।
अब बस्सी जी थोड़े दिनों में सेवानिवृत होना है तो वो इस मौके पर किसी और को खुद से ज्यादा मोदी का वफादार होना कैसे स्वीकारते? तो वो भी तुरंत दौड़ पड़े और आनन फानन में कन्हैया कुमार को गिरफ्तार लिया और वो देशद्रोह के जुर्म में। जो आदेश थे वो तो पुरे कर दिए गए मीडिया और देश की जनता का सारा ध्यान अब देशद्रोही और देशप्रेमी की बहस पर केंद्रित हो गया, ना कोई अरविन्द केजरीवाल की दिल्ली सरकार द्वारा किये गए कामो की बात कर रहा है और ना कोई मोदीजी की केंद्र सरकार से सवाल कर रहा है। अपने इस लक्ष्य में तो ये कामयाब हो गए पर जल्दबाजी में कदम गलत उठा लिए जो की उन्हें महंगा पड़ गया।
धन्यवाद ABP न्यूज़ जिसने पूरा विडियो जनता के सामने रखा वरना तो देश ने तो कन्हैया पर देशद्रोही का ठप्पा लगा ही दिया था, बस यही से भाजपा और दिल्ली पुलिस पर सवाल खड़े होने लगे, और बस्सी बैकफुट पर नजर आने लगे, गिरफ्तारी के समय ठोस सबूत होने के दावे करने वाले बस्सी जी मिडिया में आकर कहने लगे यदि कन्हैया अपनी जमानत की अर्जी लगाए तो दिल्ली पुलिस इसका विरोध नहीं करेगी, अरे ये क्या? जब आप कह रहे है कि आपके पास ठोस सबूत है तो फिर आप किसी देशद्रोही को यों ही छोड़ देंगे? उन्हें किसी को छोड़ने से मतलब नहीं था वो जल्द जल्द अपनी इस गलती से छुटकारा पाना चाहते थे। पर अब इस बहस ने कुछ ज्यादा ही जोर पकड़ लिया और ये केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस के गले की हड्डी बन चुका था, अब इससे पीछा कैसे छुड़ाए? तो नंबर आया भाजपा की हरियाणा सरकार को अपनी वफादारी दिखाने का। शुरू हुआ जाट आरक्षण का मुद्दा, यदि राज्य सरकार चाहती तो आंदोलनकारियों से बात कर सहमति बना सकती थी पर ऐसा तो उन्हें करना ही नहीं था, उन्हें तो मीडिया जो अब कन्हैया पर केंद्रित हो गया था को किसी दूसरी तरफ मोड़ना था। तो आंदोलनकारियों को ना विरोध किया और ना बात उन्हें छोड़ दिया मनमर्जी करने को, दुकाने लूटी गयी, मॉल लुटे गए, कार बसे आग की भेंट चढ़ गयी, कर्फ्यू लगा दिया गया, इंटरनेट सेवा हरियाणा में ठप्प कर दी इस बार भी बात नहीं बनी गोलीबारी के आदेश दिए गए और चार भारतीय इस आन्दोलन की भेंट चढ़ गए, शायद ही कोई ऐसा मौका हो जहां पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोलियाँ चलायी हो। खैर चार आदमियों की जान गयी पर खट्टर साहब अपनी वफादारी दिखाने में कामयाब हुए और एक बार टीवी बहस की दशा मोड़ दी गयी।
अब बजट सत्र में अपनी नाकामी फिर छिपानी है तो मेरा मानना है की उस समय कन्हैया को रिहा कर दिया जायेगा, शायद बस्सी या किसी मिडिया हॉउस को भी थोड़ा और अपनी वफ़ादारी दिखाने पड़े पर जुगाड़ पूरा है की कोई मोदी सरकार से सवाल ना कर बैठे की आपने दो साल में क्या किया? जो पाँच साल के लिए आपने वादे किये थे उसमे से आपने अभी तक किसी पर भी काम क्यों नहीं किया? एक तरफ केंद्र शासित राज्य होने के बावजूद भी अरविन्द केजरीवाल की दिल्ली सरकार ने अपने घोषणा पत्र से 70 में 17 वादे पूरे दिए है 30 पर काम चल रहा है।
हो सकता है मेरी समझ गलत हो पर जो मेरी सोच है मैंने यहाँ लिख दी, मेरा उद्देश्य किसी को नीचा दिखाना नहीं है केवल अपने विचार व्यक्त करना है। मेरे इस लेख से मेरी देशभक्ति पर शक ना किया जाए, मैं इसी भारत माँ का लाल हूँ।
जय हिन्द
वन्दे मातरम
भारत माता की जय
मैं भी कुछ दिनों से यही सोच रहा हूँ और मैंने अपने विवेक से जो कल्पना की वो आप सबके साथ शेयर कर रहा हूँ, जो लिख रहा हूँ वो मेरी सोच और मेरी मान्यता है। यदि कुछ गलत हो तो मुझे क्षमा करे मेरा उद्देश्य किसी का दिल दुखाना नहीं है, मैं एक सच्चा राष्टवादी हूँ, देश में नहीं रहता फिर भी खुद के भारतीय होने पर गर्व है और भारत माता के लिए दिल में उतना ही सम्मान और गर्व है जितना देश में बैठे एक देशवासी के दिल में है।
तो चलो शुरुआत यहाँ से करते है!
आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार का एक साल पूरा होने वाला है, पार्टी ने बड़ा जश्न (जैसा की राजस्थान की भाजपा मुख्यमंत्री ने किया) ना करते हुए इसे अपने एक साल में किये गए कामो की उपलब्धि गिनाने में करने का निर्णय लिया था।
सारी तैयारी हो चुकी, शोशल मीडिया टीम जोश के साथ एक एक काम की लिस्ट बनाने में लग गयी, खुद दिल्ली के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, सभी मंत्री अपने अपने विभाग में किये गए कामो की लिस्ट बना चुके ताकि दिल्ली की जनता ने जितने विशवास के साथ आम आदमी पार्टी की सरकार चुनी उन्हें एक साल का हिसाब दे सके।
आखिर जनता ही तो असली मालिक है इस लोकतंत्र की, तो उन्हें हक़ है ये जानने का की एक साल में उनके द्वारा चुनी हुयी सरकार ने क्या किया।
मीडिया में भी इसकी सुगबुगाहट होने लगी, चर्चाये होने लगी की वाह एक साल में इतने सारे काम कर दिए, बाकायदा मेनिफेस्टो उठा कर एक एक बिंदु की जांच करने लगे की कितने वादे पूरे हो चुके कितनो पर काम चल रहा है, बचे हुए कब तक पुरे हो जायेंगे।
जब ये सब तैयारी चल रही थी तो किसी एक सरकार को बहुत बड़ा संकट सामने दिखाई देने लगा, ऐसे सवाल सामने आते दिखाई देने लगे जिनके जवाब उनके पास नहीं है, क्योंकि जवाब के लिए केंद्र सरकार के पास केवल एक ही जवाब है 60 सालों का हिसाब ना देने वाले हमसे हिसाब मांगते है? यानि कुल मिलाकर मोदीजी के पास अपनी सरकार की उपलब्धि गिनाने के लिए कुछ नहीं था, जिन वादो के लेकर भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव में उतरी थी उन सब पर फ़ैल होती नजर आ रही थी, और मोदीजी और भाजपा को ये कतई मंजूर नहीं था की देश की जनता वो अधिकाँश भाग जो सोशल मिडिया पर एक्टिव नहीं है उन तक ये बात पहुँच जाए की मोदी सरकार हर वादे फ़ैल हो चुकी है, चाहे वो फिर महंगाई का हो या पाकिस्तान का मसला, विदेश नीति हो या गिरता हुआ रुपया और सेंसेंक्स हर मुद्दे पर भाजपा सरकार की नाकामी। तो इसे छिपाना तो बहुत जरुरी है। बीजेपी और मोदी जी को डर हुआ की कहीं अब इस पर टीवी स्टूडियो में डिबेट ना होने लगे की अरविन्द केजरीवाल ने एक साल में इतने काम करके दिखा दिए तो अन्य राज्यों की सरकार क्यों नहीं कर सकती, या केंद्र की मोदी सरकार क्यों नहीं कर रही है।
तो मेरा मानना है की अपनी ये चिंता उन्होंने अपने रक्षक दल(मिडिया, नजीब जंग, भीम बस्सी आदि) के सामने रखी और जैसे ही उन्होंने अपनी ये चिंता प्रकट की होगी इन सभी परम भक्त में होड़ लगी नंबर बनाने की, जो सबसे पहले इस मुद्दे से भटकाकर दिखा देगा वही अपनी वफादारी ज्यादा दिखा पायेगा। तो मीडिया की नजर पड़ी JNU पर कन्हैया के उस भाषण पर जिसमे वो पूंजीपति, गरीबी, भुखमरी आदि से आजादी की बात कर रहा था, तो ये कुछ मिडिया वाले जो मोदी भक्त बने बैठे है अपनी कुटिल दिमाग से उस भाषण से बाकी बात काटकर केवल आजादी आजादी को जनता के सामने रखा और वो उसमे कामयाब रहे तुरंत चारो तरफ बाकि सभी मुद्दे भूलकर केवल देशद्रोही और देशभक्त की बाते होने लग गयी।
अब बस्सी जी थोड़े दिनों में सेवानिवृत होना है तो वो इस मौके पर किसी और को खुद से ज्यादा मोदी का वफादार होना कैसे स्वीकारते? तो वो भी तुरंत दौड़ पड़े और आनन फानन में कन्हैया कुमार को गिरफ्तार लिया और वो देशद्रोह के जुर्म में। जो आदेश थे वो तो पुरे कर दिए गए मीडिया और देश की जनता का सारा ध्यान अब देशद्रोही और देशप्रेमी की बहस पर केंद्रित हो गया, ना कोई अरविन्द केजरीवाल की दिल्ली सरकार द्वारा किये गए कामो की बात कर रहा है और ना कोई मोदीजी की केंद्र सरकार से सवाल कर रहा है। अपने इस लक्ष्य में तो ये कामयाब हो गए पर जल्दबाजी में कदम गलत उठा लिए जो की उन्हें महंगा पड़ गया।
धन्यवाद ABP न्यूज़ जिसने पूरा विडियो जनता के सामने रखा वरना तो देश ने तो कन्हैया पर देशद्रोही का ठप्पा लगा ही दिया था, बस यही से भाजपा और दिल्ली पुलिस पर सवाल खड़े होने लगे, और बस्सी बैकफुट पर नजर आने लगे, गिरफ्तारी के समय ठोस सबूत होने के दावे करने वाले बस्सी जी मिडिया में आकर कहने लगे यदि कन्हैया अपनी जमानत की अर्जी लगाए तो दिल्ली पुलिस इसका विरोध नहीं करेगी, अरे ये क्या? जब आप कह रहे है कि आपके पास ठोस सबूत है तो फिर आप किसी देशद्रोही को यों ही छोड़ देंगे? उन्हें किसी को छोड़ने से मतलब नहीं था वो जल्द जल्द अपनी इस गलती से छुटकारा पाना चाहते थे। पर अब इस बहस ने कुछ ज्यादा ही जोर पकड़ लिया और ये केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस के गले की हड्डी बन चुका था, अब इससे पीछा कैसे छुड़ाए? तो नंबर आया भाजपा की हरियाणा सरकार को अपनी वफादारी दिखाने का। शुरू हुआ जाट आरक्षण का मुद्दा, यदि राज्य सरकार चाहती तो आंदोलनकारियों से बात कर सहमति बना सकती थी पर ऐसा तो उन्हें करना ही नहीं था, उन्हें तो मीडिया जो अब कन्हैया पर केंद्रित हो गया था को किसी दूसरी तरफ मोड़ना था। तो आंदोलनकारियों को ना विरोध किया और ना बात उन्हें छोड़ दिया मनमर्जी करने को, दुकाने लूटी गयी, मॉल लुटे गए, कार बसे आग की भेंट चढ़ गयी, कर्फ्यू लगा दिया गया, इंटरनेट सेवा हरियाणा में ठप्प कर दी इस बार भी बात नहीं बनी गोलीबारी के आदेश दिए गए और चार भारतीय इस आन्दोलन की भेंट चढ़ गए, शायद ही कोई ऐसा मौका हो जहां पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोलियाँ चलायी हो। खैर चार आदमियों की जान गयी पर खट्टर साहब अपनी वफादारी दिखाने में कामयाब हुए और एक बार टीवी बहस की दशा मोड़ दी गयी।
अब बजट सत्र में अपनी नाकामी फिर छिपानी है तो मेरा मानना है की उस समय कन्हैया को रिहा कर दिया जायेगा, शायद बस्सी या किसी मिडिया हॉउस को भी थोड़ा और अपनी वफ़ादारी दिखाने पड़े पर जुगाड़ पूरा है की कोई मोदी सरकार से सवाल ना कर बैठे की आपने दो साल में क्या किया? जो पाँच साल के लिए आपने वादे किये थे उसमे से आपने अभी तक किसी पर भी काम क्यों नहीं किया? एक तरफ केंद्र शासित राज्य होने के बावजूद भी अरविन्द केजरीवाल की दिल्ली सरकार ने अपने घोषणा पत्र से 70 में 17 वादे पूरे दिए है 30 पर काम चल रहा है।
हो सकता है मेरी समझ गलत हो पर जो मेरी सोच है मैंने यहाँ लिख दी, मेरा उद्देश्य किसी को नीचा दिखाना नहीं है केवल अपने विचार व्यक्त करना है। मेरे इस लेख से मेरी देशभक्ति पर शक ना किया जाए, मैं इसी भारत माँ का लाल हूँ।
जय हिन्द
वन्दे मातरम
भारत माता की जय
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