Sunday, December 27, 2015

#MannKiBaat विकलांग की जगह दिव्यांग का प्रयोग करे

Modiji on Mann ki Baat Vikaalng Divyang
#MannKiBaat PM Narendra Modi
आज फिर वो रविवार था जब हमारे प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदीजी को रेडियों पर मन की बात करनी थी, हाँ कुछ ऐसा ही नाम दिया है इस कार्यक्रम को #मन_की_बात।
देश के असंख्य लोगो को इन्तजार भी रहता है की शायद आज मोदी जी मन की बात की जगह कोई ढंग की बात करेंगे या यो कहे कोई काम की बात करेंगे।
अफ़सोस इस बार भी देश को निराशा ही हाथ लगी, जो आज की मन की बात का मुख्य बिंदु रहा वो है प्रधानमंत्री जी देशवासियों को कहा है की विकलांगो को दिव्यांग कह कर पुकारे!!!
चलो प्रधानमंत्रीजी आपकी बात मान ली विकलांगो को दिव्यांग कह कर बुला दिया अब क्या हुआ? क्या वो दिव्यांग ठीक हो गया? क्या उसकी स्तिथि में कुछ सुधार हो गया? नाम बदलने से क्या हो गया मेरी तो समझ से बाहर की बात है।
भारत वर्ष में महिलाओ के नाम के आगे देवी लगाया जाता है, लेकिन सारी दुनिया जानती है उन देवियों की हालत क्या है, आज भी हमारा समाज उन्हें देवी जैसा सम्मान नहीं दे पाया, नई वधु को जब घर में प्रवेश करवाते है तो उसे गृह लक्ष्मी कहते है पर ना जाने कितनी ही गृह लक्ष्मियों को शादी के कुछ ही महीनो बाद अनगिनत प्रताड़नाओं का सामना करना पड़ता है और बहुत सी गृह लक्ष्मिया ये जीवन छोड़ने पर मजबूर हो जाती है।
पूरे देश का तो पता नहीं पर हमारे राजस्थान में महिलाओ को घर की मालकिन कह कर पुकारा जाता है, जब भी कोई बात होती है तो यही कहते है
"भाया मालकण नै पूछणो पड़सी"
पर वो केवल नाम की ही मालकिन है उनकी दशा जो घर में होती है वो तो नौकर से भी बदतर होती है।
तो फिर विकलांगो को दिव्यांग कहने से क्या बदल जाएगा मोदीजी?

अच्छा तो होता आप देश के प्रधानमंत्री है, और वो भी पूर्ण बहुमत से कुछ ऐसी घोषणा करते जिससे उन विकलांगो को अंग प्रत्यारोपण में सरकार सहयोग करती और उन्हें सच में दिव्यांग बनाया जा सकता, इन ढकोसलों और थोथी बातो की जगह कोई काम के बात की घोषणा करते।

आज विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है की किसी भी अंग का प्रत्यारोपण होना संभव हो गया है, यदि आप सच में विकलांगो/दिव्यांगों के लिए कुछ करना चाहते थे सरकार की तरफ से ऐसे नए हॉस्पिटल की घोषणा करते जहां उन विकलांगो को सरकार फ्री या बहुत कम खर्च में अंग प्रत्यारोपण करती वो होता सच में एक प्रधानमंत्री  का काम।

चलो इतना बड़ा काम भी आप  नहीं करना चाहते तो ये तो सारी दुनिया को पता है कि दिल्ली विश्व में सबसे प्रदूषित शहरो की गिनती में आता है और उस प्रदूषण की वजह से ना जाने कितनी बीमारियाँ लोगो को जकड रही है और आने वाली पीढ़िया शायद दिव्यांग पैदा होने लग जाए, आज दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने उस प्रदूषण रूपी दानव को खत्म करने के  लिए पहल की है, अच्छा होता आप मन की बात में केवल १ मिनट भी उस पर बोलते, दिल्ली वासियों को आग्रह करते की ये कदम उन्ही के बच्चो के स्वास्थ्य के लिया उठाया जा रहा है उसमे सहयोग करे, जैसे आपने स्वच्छ भारत का आग्रह किया था प्रदूषण मुक्त दिल्ली का भी आग्रह कर सकते थे?
या केवल ये सब इसीलिए नहीं किया की ये दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार कर रही है, तो आप उनके किसी भी अच्छे काम को सफल होता कैसे देख सकते है?

इतनी भी क्या दुश्मनी प्रधानमंत्रीजी? और फिर दुश्मनी किस बात की? क्या आप दिल्ली की जनता के प्रधानमंत्री नहीं है? दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है अर्थात आपकी तो और भी ज्यादा जिम्मेदारी बनती है दिल्ली की जनता के प्रति तो फिर अपने घमंड और अहम से बाहर आकर दिल्ली की जनता से बहुत बड़ी हार की जलन आज भी आपकी रातो की नींद हराम करती है उसे सच्चे दिल से स्वीकार करे, जिस प्रधानमंत्री को पूरे देश यहां तक की दिल्ली भी बहुत भारी बहुमत से उस पद तक पहुंचाया है उसी दिल्ली ने उन्हें इतनी बड़ी हार कुछ ना कुछ सन्देश देने के लिए दी है तो उस सन्देश को समझे और दिल्ली की जनता के हित में हो रहे कार्यों पर खुलकर समर्थन करे और अपना सहयोग दे, वरना तो जो दिल्ली की जनता ने दिया था वो अन्य राज्य भी आप तक पहुँचा  सकते है।

धन्यवाद । जय हिन्द ॥

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Saturday, December 26, 2015

Vasundhra Raje Celebrate 2 year - वसुंधरा राजे का 2 साल का सेलेब्रेसन

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने अपने दो साल पूरे होने पर एक भव्य आयोजन किया जिसमे पूरे प्रदेश से बसे भरकर भरकर लोगो को इस समारोह को सफल बनाने और भीड़ जुटाने के लिए लाया गया।
खैर मैं ही लेट हूँ ये ब्लॉग लिखने में वसुंधरा राजे ने ये महोत्सव कई दिन पहले ही मना लिया था।

मैंने काफी कश्मकश के बाद भी इस सवाल का जवाब नहीं खोज पाया कि आखिर ये किस बात का जश्न मनाया गया?
ऐसा कौनसा काम राजस्थान की भाजपा सरकार ने इन 2 साल में कर दिया जिससे की उसे एक जश्न मनाकर प्रदेश की जनता को दिखाने की जरुरत पड़ गयी। मैंने  वसुंधराजी के सम्बोधन को भी सुना ये जानने के लिए कि आखिर वे कुछ तो बताएंगी प्रदेश की जनता को की आखिर वो क्या दिखाने के लिए जश्न मना रही है।
अफ़सोस उनके सम्बोधन में भी मेरे इस सवाल का जवाब नहीं ढूंढ पाया।

फिर मुझे ख्याल आया अपने कुछ भाजपा मित्रों को फोन करने  का, तो लगे हाथो मैंने  राजस्थान भाजपा के दो सक्रिय कार्यकर्ताओ को फ़ोन करके उनसे कुशल क्षेम पूछने के बाद मैं अपने असली मुद्दे पर आ गया।

मैंने कहा: और तो ज्यां आया के वसुंधरा का जश्न में 
दोस्त: क्याका ज्या आया यार, फ़ालतू में कतरी जनता परेशान होगी, जोरामरदी लोगां ने पकड़ पकड़ कर लेगा और सगळा बठै थू थू ही कर रया  हां, बिना फ़ालतू का नाटक। 

अब तो ये सवाल और पेचीदा होने लग गया और खुद को संतुष्ट करने के लिए एक तर्क संगत जवाब पाना भी जरुरी था, खैर वसुंधरा राजे ने अपने सम्बोधन में दो तीन बार ये तो जरूर कहा की उन्होंने इन दो सालो में बहुत काम किये है, पर बताया एक भी नहीं, अब कौनसे काम किये है वो ही जाने, प्रदेश की जनता त्राहि त्राहि कर रही है, बिजली की दाम दोगुने से भी ज्यादा कर दिए, सरकारी प्राइमरी स्वास्थ्य केंद्र को निजी हाथो में दे दिया, रोडवेज कर्मचारी कई महीनों से बिना तनख्वाह के बैठे है और अंततः मजबूर होकर धरने प्रदर्शन भी करते है, बिजली विभाग के कर्मचारी भी हड़ताल पर चले जाते है, महंगाई तो बेटी की तरह बढ़ती ही जा रही है और आम आदमी रोज इसी चिंता में डूबा रहता है की आज का दिन तो निकल गया अब कल का कैसे निकलेगा।

खैर मैंने जो एक तर्क संगत निष्कर्ष निकाला उससे ये निकलकर सामने आया कि कहीं ये सारी कवायद मोदीजी को ये दिखाने के लिये तो नहीं की कैसे उनकी लाख कोशिशो के बावजूद भी वो उस कुर्सी पर  मजबूती से टिकी हुयी है और मोदीजी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाये, बिगाड़ पाना तो दूर उनसे इस्तीफा भी नहीं ले पाये।
मोदीजी और वसुंधरा राजे के बीच में रिश्ते सामान्य नहीं है ये तो सर्व विदित है, चाहे वो राजे के बेटे दुष्यंत कुमार को मंत्री पद का मामला हो, या ललित गेट कांड में मोदीजी सहित केंद्र भाजपा की चुप्पी, या फिर वसुंधरा सरकार के एक चहेते अधिकारी के यहां CBI का छापा, अब मोदीजी की इतनी तो हिम्मत नहीं हुयी की अरविन्द केजरीवाल के दफ्तर की तरह वसुंधरा राजे के दफ्तर में CBI भेज सकते पर किसी तरह है उन्हें आरोपों के घेरे में लेने के लिए उनके एक अधिकारी के यहां तक CBI जरूर भिजवा दी गयी।

ललित मोदी काण्ड के समय तो समस्त भाजपा चुप थी, आज जिस तरह अरुण जेटली को बचाने तमाम भाजपा नेता उनके पक्ष में सामने आ रहे है, या फिर इसी ललित मोदी काण्ड में सुषमा स्वराज को बचाने के लिए जिस तरह भाजपा आगे आई वो फुर्ती वसुंधरा राजे के लिए केंद्र भाजपा द्वारा नहीं दिखाई गई, जैसे की मोदी मण्डली को मौका मिल गया हो वसुंधरा को घेर कर उन पर इस्तीफे के लिए दबाव बनाने का।

खुद अमित शाह राजस्थान में आये ये पता करने के लिए की यदि वसुंधरा को जबरदस्ती पद छोड़ने पर मजबूर किया जाए तो पार्टी को क्या नुक्सान हो सकता है, पर इस बात की तो तारीफ़ करनी पड़ेगी की राजस्थान भाजपा का एक बहुत बड़ा हिस्सा मजबूती से वसुंधरा राजे के साथ खड़ा था, तो अमित शाह को जब लगा की इससे तो पार्टी में बड़ी भयंकर गुटबाजी सामने आएगी और इसका खामियाजा उन्हें अन्य प्रदेशों में भी भुगतना पड़ सकता है, हो सकता है फिर एंटी मोदी गुट वाली भाजपा एकजुट हो जाये और शायद एक बहुत बड़ी विद्रोह की लहर सामने आ जाए।

जब इन सारे पहलुओ पर विचार किया तब कही जाकर केंद्र भाजपा की तरफ से वसुंधरा के बचाव में कुछ आवाजे मज़बूरी में निकलकर सामने आई।

तो जरूर वसुंधरा राजे को हक़ बनता है कि वो मोदीजी को एक जश्न के माध्यम से ये सन्देश दे सके की देखलो कर दिए दो साल पूरे, कोशिश करने वालो ने बहुत की थी इस कुर्सी से धकेलने की पर मैं फिर भी बैठी हूँ और अपनी इस कामयाबी को दिखाने के लिए एक जश्न तो बनता ही है.....

मेरे इस लेख से किसी की भावनाए आहत हुयी हो तो मैं उनसे करबद्ध क्षमा चाहता हूँ, मन के विचार यदि यहां भी नहीं लिखूंगा तो कहाँ लिखू, खैर मैं ये सब बाते बिना किसी प्रमाण के लिए लिख रहा हूँ, सब मेरे अपने निजी विचार है।
धन्यवाद । जय हिन्द । वन्दे मातरम
 

Sunday, December 20, 2015

Kirti Azad save Arun Jaitley or Expose?

पता नहीं क्यों मुझे नहीं लगता की आज कीर्ति आजाद अरुण जेटली को DDCA के घोटालो में एक्सपोज़ करेगा।
जिस तरह है भाजपा कीर्ति आजाद पर सॉफ्ट कार्नर बनाये हुए है उसे देखकर तो ये  लगता है की आज कीर्ति आजाद इस पूरे मामले को एक नया मोड़ देंगे।
हाँ वो DDCA के भ्रष्टाचार पर बात जरूर करेंगे, कुछ लोगो को उसमे घेरेंगे भी पर किसी ना किसी तरह वो भी शायद आज अरुण जेटली को क्लीन चीट दे ही देंगे।
यदि ऐसा नहीं होता तो अब तक भाजपा नेता कीर्ति आजाद के खिलाफ मोर्चा  खोल चुके होते, अब तक तो वो कीर्ति आजाद पर हजारो मन गढंत आरोप लगा चुके होते।
जैसा की अब तक भाजपा करती आई है, यदि कोई भी उनके भीतर से पार्टी के खिलाफ या किसी बड़े नेता के खिलाफ आवाज उठाता है तो तुरंत भाजपा का एक वर्ग उस पर हमला बोल देता है, या उसके किसी  अन्य पार्टी से लेकर समबन्धों को उजागर करने लग जाते है।
ना तो भाजपा का सोशल मीडिया कीर्ति आजाद पर कोई हमला बोल रहा है, और ना ही पार्टी के प्रवक्ता या नेता उन पर किसी तरह के आरोप प्रत्यारोप कर रहे है।
इन सबको लेकर तो यही लगता है की कहीं ना कहीं सारा मामला सेट है, आज कीर्ति आजाद की प्रेस कॉन्फ्रेंस और अरुण जेटली को फाइनली क्लीन चिट, क्योंकि आखिर पिछले कई वर्षो से कीर्ति आजाद DDCA के घोटालो पर लगातार बोल रहे है तो यदि उनसे जेटली जी को क्लीन चिट दिलवा दी जाए तो वो सबसे बड़ी क्लीन चिट होगी, और जहां तक मुझे लगता है भाजपा की यही रणनीति होगी जिससे वो इस मुद्दे को लेकर जिन्होंने भी अरुण जेटली को घेरा है उन पर हमला कर सके और जेटली को पाक साफ़ घोषित किया जा सके।
चलो देखते है क्या होता है, थोड़ी ही देर में PC शुरू होने वाली है।
मैं भी आपके साथ यही बैठा हूँ देखने के लिए क्या होता है आज की PC में, क्या कीर्ति आजाद अरुण जेटली को बचा ले जाएंगे या उन पर भ्रष्टाचार के आरोप को मजबूती प्रदान करेंगे
जय हिन्द

Monday, October 26, 2015

तो क्या अभी तक मोदी सरकार ने कोई काम नहीं किया?

हाँ, बिलकुल सही पढ़ा आपने, मैं अपने आप से यही सवाल पूछ रहा हूँ कि क्या मोदीजी ने सरकार बनने के डेढ़ साल में भी कोई काम नहीं किया?

अब आप पूछोगे कि आखिर मैं ऐसा क्या सोच रहा हूँ?

इसके पीछे भी कारण है बिहार की चुनाव रैली जिनमे प्रधानमन्त्री सब कुछ भूलकर एक पार्टी के प्रचारक के रूप में चुनावी सभा करते घूम रहे है, मैंने कुछ चुनावी सभाओ में मोदीजी का सम्बोधन सुना और उससे सुनने के बाद ही मेरे  मन में ये सवाल आया कि आखिर मोदीजी के पास ऐसा कुछ भी नहीं जिसे वे अपनी उपलब्धि के रूप में सबको बता सके?

यदि इन डेढ़ साल में कुछ काम किया होता तो आज बिहार की चुनावी सभाओ में मोदीजी को लालू और नितीश को गाली देने के बजाय अपने काम गिनाने से ही फुर्सत नहीं होती और बिहार की जनता से वोट भी यही कहकर माँगते की देखो आपने मुझे केंद्र की सत्ता दी तो मैंने ये ये काम केंद्र सरकार में किया है, ये देखिये मैंने कैसे देश में विकास की गंगा बहा दी है, ये देखिये हमने लोकसभा चुनाव से पहले जनता से ये वादे किये थे और जनता ने हमे इन्ही वादो को पूरा करने के लिए पांच साल  के लिए सत्ता सौपी थी और आज डेढ़ साल में हमने आपसे किये वादो में इतने वादे पूरे कर दिए है, इन वादो पर काम चालू हो चुका है, इन वादो पर अभी विचार विमर्श चल रहा है आदि आदि!

सच में यदि केंद्र में मोदी सरकार इन डेढ़ साल में कुछ काम करती तो  बिहार की जनता को उन्हें सुनाने के लिए गाली और व्यंग की जगह अपने कामो की लिस्ट होती जो की उनके पास नहीं है।
ना ही लोकसभा चुनाव के वादो का जिक्र है और उससे भी हैरानी की बात है सरकार बनने के बाद ज्यादातर समय विदेशो में बिताने वाले प्रधानमन्त्री के पास तो अपने विदेशी दौरों की भी कोई बताने लायक उपलब्धि नहीं है वरना तो वो इसी का बखान करते रहते।

हाँ उनके पास कुछ है  तो वो है झूठे वादे या अमित शाह की भाषा में  कहे तो उनके पास है जुमले हाजी वही जुमले जो लोकसभा चुनाव से पहले वादो के रूप में जनता से किये गए और चुनाव जितने के बाद एक पत्रकार को बुलाकर अपने वादो को जुमला घोषित कर दिया जाता है, आज वही खेल बिहार में कर रहे है, हम ऐसा कर देंगे, हम वैसा कर देंगे, अरे भाई कर देंगे, कर देंगे? ये भी  बताओ केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार है वहां पर आपके क्या किया है?

है कुछ बताने लायक? नहीं है ना?

बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार!!

सुन सुनकर कान पक चुके थे लोकसभा चुनाव से पहले लेकिन ख़ुशी थी जब केंद्र में पूर्ण बहुमत वाली भाजपा की मोदी सरकार बनी, एक तसल्ली थी की कम से कम अब महंगाई पर तो लगाम लगेगी, पर ये कैसे लगाम ऐसा लग रहा है जैसे लगाम तो लगादी मोदीजी ने महंगाई पर, लेकिन वो लगाम किसी और(कुछ पूंजीपतियों) को सौप दी तभी तो आज सब्जी, प्याज, दाल, टमाटर हर चीज के भाव आसमान छू रहे है, दाल तो मानो आम आदमी की पहुँच से बाहर की बात हो गयी है, हम हॉस्टल में थे तो अक्सर दाल ही बनाते थे क्योंकि यदि खाना खाते समय भी दो दोस्त और आ जाते तो चूल्हे पर पड़ी दाल में एक गिलास पानी और ज्यादा कर देते और हंसकर बोलते "दे दाल में पानी" अब तो दाल आम आदमी की पहुँच से बाहर हो गयी है और केंद्र की मोदी सरकार चुपचाप हाथ पर हाथ धरी बैठी है, आखिर कौनसी महँगाई कम करने की बात लोकसभा चुनाव से पहले मोदीजी करते थे?
खैर ऐसा लगता है इन डेढ़ सालो में वर्तमान मोदी सरकार के पास यदि कुछ है तो वो है विफलताओं की एक लम्बी लिस्ट और जाहिर है कोई भी सरकार अपनी विफलताएं किसी को  बताएगी, तो अब चुनावी सभा में कुछ बोलने को बचा है तो वो है सामने वालो को जी भरकर गाली निकालो, जनता के सामने झूठे वादो की झड़ी लगादो और ये काम मोदीजी बखूबी कर रहे है।

आशा है बिहार की जनता सब कुछ देख और सोच समझ रही होगी, और अपना वोट देने से पहले सही और गलत को परखकर बिहार के उज्जवल भविष्य के लिए सही आदमी को चुनेगी।

जय हिन्द॥

वन्दे मातरम॥


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Friday, October 16, 2015

ऐसी होती है माँ - Copied

एक माँ चटाई पर लेटी आराम से सो रही थी......
मीठे सपनों से अपने मन को भिगो रही थी.......

तभी उसका बच्चा यूँ ही घूमते हुये समीप आया....
माँ के तन को छूकर हल्के हल्के से हिलाया.....

माँ अलसाई सी चटाई से बस थोड़ा उठी ही थी....
तभी उस नन्हें ने हलवा खाने की जिद कर दी....

माँ ने उसे पुचकारा और अपनी गोदी में ले लिया.....
फिर पास ही रखे ईटों के चूल्हे का रुख किया....

फिर उसने चूल्हे पर एक छोटी सी कढाई रख दी...
और आग जलाकर कुछ देर मुन्ने को ताकती रही....

फिर बोली बेटा जब तक उबल रहा है ये पानी....
क्या सुनोगे तब तक कोई परियों बाली कहानी...

मुन्ने की आंखें अचानक खुशी से थी खिल गयी....
जैसे उसको कोई मुँह मांगी मुराद ही मिल गयी...

माँ उबलते हुये पानी में कल्छी ही चलती रही....
परियों का कोई किस्सा मुन्ने को सुनाती रही....

फिर वो बच्चा उन परियों में ही जैसे खो गया....
चटाई पर बैठे बैठे ही लेटा और फिर वहीं सो गया.....

माँ ने उसे गोद में ले लिया और धीरे से मुस्कायी.....
फिर न जाने क्यूँ उसकी आंख भर आयी.....

जैसा दिख रहा था वहां पर, सब वैसा नहीं था.....
घर में रोटी की खातिर एक पैसा भी नहीं था....

राशन के डिब्बों में तो बस सन्नाटा पसरा था....
कुछ बनाने के लिए घर में कहाँ कुछ धरा था....

न जाने कब से घर में चूल्हा ही नहीं जला था.....
चूल्हा भी तो माँ के आंसुओं से ही बुझा था......

फिर मुन्ने को वो बेचारी हलवा कहां से खिलाती....
अपने जिगर के टुकड़े को रोता भी कैसे देख पाती.....

अपनी मजबूरी उस नन्हें मन को मां कैसे समझाती....
या फिर फालतू में ही मुन्नें पर क्यों झुंझलाती.....

हलवे की बात वो कहानी में टालती रही.....
जब तक वो सोया नहीं बस पानी उबालती रही.....

ऐसी होती है माँ

नोट: ये रचना मेरी नहीं है, पर मुझे बहुत ही अच्छी लगी तो आप सभी के साथ शेयर करने के लिए यहाँ कॉपी-पेस्ट कर दिया। 

Wednesday, October 14, 2015

माता रानी स्वागत है आपका पूरे एक साल बाद

Maata Rani ka Darbar at Ram Kiroriwal House, 2015
माता रानी का दरबार, नवरात्रि 2015
सर्व मंगल मांगलेय, शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्य त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥

शारदीय नवरात्रे यानि माता रानी से मिलने का मौका, वैसे तो माँ सदा बेटे के पास ही होती है पर ये 9 दिन कुछ ख़ास होते है, सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक बस माता रानी ही दिलो दिमाग पर छायी रहती है।

आज सुबह जल्दी उठा और तैयारी शुरू करदी माता के आगमन की, अरे भाई माता रानी आने वाली है तो सब कुछ उनके स्वागत में तैयार तो करना ही है, वैसे तो तैयारी रविवार को शुरू हो गयी थी, जो आवश्यक चीजे है पूजा पाठ के लिए उनकी खरीददारी तो पहले ही कर ली थी, तो आज का काम रह गया था माता के लिए आसान सजाना और पूजा की शुरुआत करना।

तो उठते ही तैयारी शुरू, स्नान करने के पश्चात माता का कमरा सजा कर, पोंछा लगा दिया एक काम तो हुआ, अब पूजा के लिए फल एक एक को धोकर शुद्ध करना, फिर अखंड ज्योत का दीपक, कलश, नारियल व् अन्य सामग्री को एक एक कर रखना, अब बचा दूब और पुष्प तोड़कर लाना, रात से ही बारिश हो रही थी पर माँ आ रही है तो बारिश की क्या परवाह, उलटे मन में विचार आया वाह माता रानी दूब और पुष्प तो आप बारिश से धो रही है, तो जल्दी से सीढ़ियों से निचे उतरा कुछ दूर चलने पर गुलाब का पेड़ था और उससे थोड़ी आगे दूब एक एक तार चुनकर फिर फूल लिए और वापस घर की तरफ रवानगी।

और अब शुरू हुआ माँ का आवाहन, अब पूजन करना है तो सर्वप्रथम प्रथम पूजित विघ्न विनाशक गणेशजी महाराज को तो बुलाना ही था तो सर्वप्रथम गणेशजी का आवाहन कर आसान ग्रहण करने की प्रार्थना की और फिर माता रानी का आवाहन एक अजीब सी उमंग और उत्साह था, चेहरे पर मुस्कान तो ह्रदय माँ से मिलने के लिए भाव विभोर माता की तस्वीर को देखते ही फिर चेहरे पर मुस्कान दौड़ पड़ती और फिर बड़े प्यार से माँ को आसान ग्रहण करवाकर जैसे मुझे आती है वैसे पूजा शुरू की।

दिल बहुत खुश है, माँ घर में विराजमान है अब काम पर जाने से पहले रोज माँ को बोलकर जाना माँ मैं जा रहा हूँ और काम पर से आते ही हाथ मुहं धोकर सीधे माँ के दरबार में जाकर बोलना माँ मैं आ गया हूँ, इस सबमे कुछ और ही आनंद की अनुभूति होते है जो शब्दों के जरिये कहना बहुत मुश्किल है।

बस मन कर रहा था आप सबके साथ मेरा ये दिन साँझा करने का तो लिख दिया।
माता रानी अपने सभी बेटो की उनके हित में सभी मुरादे पूरी करे और हमे जीवन की कठिनाइयों से पार होने के लिए शक्ति प्रदान करे, इन्ही शुभ कामनाओ के साथ सभी आगंतुकों को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाये।

जय माता दी॥

Monday, September 21, 2015

मोदी, मिडिया, केजरीवाल और प्याज

देश के एक जाने माने समाचार चैनल "आजतक" पर आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार को लेकर एक अफवाह सुबह से चल रही थी, प्याज घोटाला, कहाँ गए प्याज के पैसे सोशल मिडिया भी कहाँ पीछे रहने वाला था अपनी तरफ से सवालों की बौछार करने लगा। 

बिना सत्य को जाने कुछ लोगो ने एक ईमानदार सरकार को अपराधी बनाकर कटघरे में खड़ा कर दिया। यही वो टीस है जिस देश के लाडले पत्रकार सुपर जर्नलिस्ट रविश कुमार भी लिखते है, भाड़े की गैंग सोशल मिडिया पर बिना तथ्य को जाने झूठ को भी सच बनाकर परोस देती है। 

कुछ ही घंटो  में सरकार की तरफ से भी  अपना पक्ष रखा गया स्तिथि को स्पष्ट करने के लिए और जनता के सामने आया की दिल्ली सरकार ने कही ऐसा कोई घोटाला नहीं किया गया या जिस तरह का आरोप दिल्ली सरकार पर लगाया गया की 18 रूपये किलो  में प्याज खरीदकर 40 रूपये किलो में बेचे गए ऐसा कहीं नहीं पाया गया, सरकार ने अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए प्याज की खरीद के सभी दस्तावेज मीडिया के बुद्धिजीवी वर्ग के बीच रख दिए। 

अब जिस समाचार चैनल ने ये खबर चलायी वो इतना बेवकूफ तो नहीं होगा की उसे सच्चाई का पता पहले से नहीं हो, और यदि सच में उन्हें नहीं पता था तब तो आजतक की विश्वशनीयता पर ये बहुत बड़ा प्रशन चिन्ह होगा की एक समाचार चेनल बिना किसी बात की पूरी जांच पड़ताल किये यो ही झूठी खबरे चला देता है?

मैंने स्वविवेक से इस पूरी घटना को समझकर ये समझने की कोशिश कीआखिर क्यों एक समाचार चेनल झूठी खबर दिखाएगा। 

जाहिर सी बात है किसी भी भले आदमी को बदनाम करना हो तो उसके खिलाफ मनगढ़न्त और झूठी कहानी बनाकर लोगो को सुनाओ और उसे बदनाम करदो, बिलकुल ठीक उसी तर्ज पर इस समाचार चेनल ने किसके इशारे पर ये सब किया वो तो वो खुद ही बता सकते है पर दिल्ली और पूरे देश में दिन-ब-दिन लोकप्रिय होती जा रही आम आदमी पार्टी की सरकार को बदनाम करने के इस काम को उन्होंने अंजाम दे ही दिया।

अब भाजपा और समाचार चेनल ने दावा किया की 18 रूपये किलो में प्याज खरीदकर 40 रूपये किलो में बेचे, अब इसमें ये बात तो सही है की जहाँ से प्याज चला यानी नासिक मंडी से वहाँ पर प्याज 18 रूपये किलो ही बिका था, लेकिन ये प्याज दिल्ली सरकार ने नहीं बल्कि केंद्र सरकार की एक एजेंसी SFAC ने नासिक से ख़रीदे और दिल्ली सरकार को 32.86 रूपये किलो में बेचे, अब इस पर ट्रांसपोर्ट, बेचने के लिए टेम्पो और कर्मचारी की तनख्वाह आदि मिलाये तो प्याज की दिल्ली सरकार को लागत मूल्य आई 39.86 रूपये प्रति किलो। राज्य सरकार ने अपनी तरफ से 9.86 रूपये प्रति किलो सब्सिडी देकर दिल्ली की जनता को 30  रूपये प्रति किलो के हिसाब से प्याज उपलब्ध करवाये। 

अब सवाल केंद्र में बैठी मोदी सरकार की नियत पर उठता है, जब नासिक मंडी में प्याज 18 रूपये/किलो मिल रहा था तो केंद्र सरकार ने क्यों प्याज के बढ़ते हुए दामों पर अंकुश नहीं लगाया, पूरे देश में प्याज 70 से लेकर 100 रूपये किलो तक बिका और मोदी सरकार इस पर मौन होकर बैठी रही, आखिर केंद्र सरकार व मोदीजी किन लोगो को फायदा पहुँचाना चाह रहे थे? जाहिर सी बात है आम जनता को तो नहीं पहुँचा रहे थे तो फिर फायदा केवल और केवल इन पूँजीपति मुनाफाखोरों को हो रहा था जिसे यदि  सरकार चाहती तो रोक सकती थी और जिस प्रकार दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल की सरकार ने सस्ते दामों में जनता को प्याज उपलब्ध करवाकर चंद पूँजीपति मुनाफाखोरों पर अंकुश लगाया उसी प्रकार पूरे देश में ये किया जा सकता है। 

पर मोदी सरकार ने ऐसा नहीं किया अर्थात देश की गरीब जनता के हित में ना सोचकर कुछ पूँजीपतियों को देश की आम जनता को लूटने की खुली छूट दे दी। 

पर दिल्ली में वो ऐसा नहीं कर पाये, शायद यही आग उनके सीने में सुलग रही थी की इस केजरीवाल ने कुछ गिने चुने पूँजीपतियों की बजाय दिल्ली की आम जनता को राहत  दी, बस उसी बदला लेने के लिए ऐसी मनगढ़ंत और झूठीं खबर चलाकर दिल्ली की केजरीवाल सरकार बदनाम करने की साजिश रची गयी। 

और यदि ये खबर सच है तो इस कथित समाचार चैनल की जनता के प्रति  जवाबदेही बनती है की वो इसके पक्ष में सारे सबूत जनता के सामने रखे और यदि वो ऐसा करने में फ़ैल होते है तो उसी समाचार चैनल में जिस तरह चौबीस घंटे ब्रेकिंग न्यूज़ झूठी खबर की चलायी गयी ठीक उसी तरह 24 घंटे ब्रेकिंग न्यूज़ जनता को गुमराह करने के लिए जनता से और दिल्ली सरकार को  करने के लिए  दिल्ली सरकार और केजरीवाल से इसके लिए माफ़ी की खबर भी चलानी चाहिए। 



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Thursday, August 20, 2015

वो मेरा राजस्थान रोडवेज का सफ़र

सुबह जल्दी उठा और तैयार हुआ, जयपुर जाना था।
कार बाहर निकाली और जयपुर के लिए रवाना हो गया, अभी 1-2 किलोमीटर ही चला था कि एक दोस्त का फ़ोन आ गया। मैंने गाडी एक तरफ रोककर phone अटेंड किया।
"हाय, गुड मोर्निंग! क्या कर रहा है?" मेरे दोस्त ने तुरंत ये सवाल दाग दिया!
"यार ड्राइविंग कर रहा था, जयपुर जा रहा हूँ!" मैंने कहा
"कर रहा था, मतलब?" दोस्त ने कहा
"यार कर रहा था, अब तेरा phone अटेंड करने के लिए साइड में रोक ली है, गाडी चलाते हुए कोई phone पर बात थोड़े ही करते है!" मैंने समझाया
तुरंत दोस्त ने एक लम्बी चौड़ी कहानी सुना डाली, कैसे वो भी कुछ दिन पहले कार से जयपुर गया था और एक ट्रैफिक सिग्नल पर जब वो हरी बत्ती होने पर पार कर रहा था तो ट्रैफिक पुलिस वाले ने ज्यों ही जयपुर के बाहर के कार नंबर देखकर  उसे रोक लिया और लाइसेंस दिखने के लिए कहने लगा, दोस्त ने कहा गाडी एक तरफ पार्किंग करदू फिर दिखा देता हूँ, लेकिन ट्रैफिक पुलिस वाला नही माना, जिद्द करने लगा की उसे केवल लाइसेंस देखना है और कुछ नहीं। दोस्त ने ज्यों ही लाइसेंस दिया, पुलिस वाले ने तुरन्त कहा तेरा तो चालान कटेगा तूने लालबत्ती क्रोस की है, मेरे दोस्त ने बड़ी जिम्मेदारी से कहा की नहीं मैंने हरी बत्ती होने पर पार किया है और मेरी गाडी से आगे भी गाड़ियां थी तथा पीछे भी गाड़ियां थी जिन्होंने उस बत्ती को पार किया है तो फिर कैसे आप मुझे अपराधी बना सकते है जब मेरे पीछे वाली कम से कम 10-15 गाड़ियाँ निकली है तो वो ही कैसे अपराधी हो गया और वो भी तब जब उसने हरी बत्ती क्रोस की है। आप चाहे तो CCTV फुटेज निकलवाकर तुरंत देख ले दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। अगर फुटेज में मेरी गाडी लालबत्ती पार करती दिखाई देगी तो गाडी को भी यही छोड़ दूंगा, आपको उपहार कर दूंगा।
पर इन सब दलीलों को ट्रैफिक पुलिस वाले पर कोई असर नहीं हो रहा था वो तो बस अपनी जिद्द पर अड़ गया की अब तो तेरा चालन ही होगा, इधर बीच सड़क पर गाडी रोकने से अन्य वाहनों की लम्बी लम्बी कतारें लग गयी थी, सभी हॉर्न बजा रहे थे, इतने में एक दुसरा गाड़ी वाला आया ये देखने के लिए कि आखिर हो क्या रहा है, संयोग से वो मेरे दोस्त का जानकार निकला जब उसने मेरे दोस्त से पूछा क्या हुआ तो उसने सारी हकीकत बताई और मेरे दोस्त के जानकार ने स्तिथि की समझते हुए ट्रैफिक पुलिस वाले को एक तरफ बुलाया और एक महात्मा गाँधी की फोटो लगा 100 का नोट उसकी तरफ बढ़ा दिया, ट्रैफिक पुलिस वाले ने सब कुछ सही कहते हुए बोला, ok अब आप जा सकते है ये लीजिये आपका लाइसेंस।
फिर मेरे दोस्त ने और आगे बताया की यार तू विदेश में गाड़ी चलाया हुया है यहाँ जयपुर का ट्रैफिक नहीं देखा तुमने और उस पर भी कोई नियम कायदा नहीं कोई पता नहीं कौन, कब और कहाँ से बीच में आ जाए तो उसने सलाह दी की जयपुर में ऑटो या कार ले लेना या फिर ड्राईवर को साथ लेते जाऊं, तो मैंने सोचा चलो यार इन सबसे बचने के लिए अच्छा है पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करूँ और इससे एक अच्छा अनुभव भी होगा।
मैंने गाड़ी को वहीं एक दूकान के पास पार्किंग की और बस का इन्तजार करने लगा, रोडवेज की बस आई और मैं बस में चढ़ गया, मैंने देखा बस में एक महिला परिचालक थी, देखकर बहुत ख़ुशी हुयी की एक महिला बस में परिचालक है, फिर ये काम बड़ी ही जिम्मेदारी का होता है और कई बार हिम्मतवाला भी होता है क्योंकि बहुत से यात्री परिचालक से लड़ने झगड़ने लग जाते है किराए के लिए। मेरे मन में ख्याल आया कितनी बहादुर है ये महिला परिचालक और साथ ही साथ ख़ुशी भी हुयी की मेरे प्रदेश में महिलाए तरक्की कर रही है। अब वो एक गृहिणी की छवि से बाहर निकलने की कोशिश कर रही है। इतना ही नहीं मैंने पूरे रास्ते गौर से हर सवारी जो बस में चढ़ या उतर रही थी की तरफ गौर से देखकर उनके हाव भाव जानने की कोशिश भी कर रहा था, मैंने पाया की बस में चढ़ने वाली हर महिला सवारी के चहरे पर एक शकून भरी मुस्कराहट थी एक महिला परिचालक को देखकर, जैसे की उन्हें लग रहा हो की कोई है जो उनका ख्याल रखेगा, इस तरह का चैन और शकून एक पुरुष परिचालक के साथ महिलाओं में चहरे पर नजर नहीं आता है।
मैं हमारी सरकार को मन ही मन धन्यवाद करता रहा जिसने महिला परिचालको की नियुक्तियाँ की। पर इसके अतिरिक्त कुछ और भी था जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया मैं बार बार खुद से सवाल करता रहा की आखिर हम कब इन सबसे बाहर निकलेंगे और सोचने को मजबूर करने वाली चीज थी बस में चिपके हुए विज्ञापन।
पहली नजर पड़ी विज्ञापन पर जिसमे लिखा था गुप्त रोगों का इलाज शाही दवाखाना
मैंने सोचा सरकारी बस में इस तरह का विज्ञापन? मैं मानता हूँ बस में विज्ञापन से सरकार को आमदनी होती है विज्ञापन दाता एक निश्चित राशि के भुगतान के बाद अपने विज्ञापन बस में चिपका सकता है लेकिन क्या इस तरह के विज्ञापन देकर सरकार इन लोगो को बढ़ावा नहीं दे रही है? आखिर ये नीम हकीम ये शाही दवाखाने वाले ये किस सरकार से मान्यता प्राप्त है, इनके पास में कौनसी वैध शैक्षणिक योग्यता है ये सब करने के लिए और जो जड़ी बूंटी या दवा के नाम पर वो लोग कुछ देते है वो किस सरकार द्वारा authorised है, हजारो सवाल दिमाग में चल रहे थे, सरकार को तो इन सबको रोकना चाहिए जबकि हो इसका उलट रहा है, रोकने की बजाय सरकारी संसाधनों पर उनके विज्ञापन चिपका कर जैसे की सरकार उन्हें खुली अनुमति दे रही हो की हाँ आप कीजिये अपना गोरख धंधा और बनाइये लोगो को मुर्ख।
दूसरा विज्ञापन नजर आया जिसमे लिखा था, हर प्रकार की समस्या का समाधन ये झाड़फूंक और जादू टोने से सम्बंधित था बस इन्ही दोनों के 10-12 पर्चे पूरी बस में चिपके हुए थे, फिर वही सारे सवाल इस विज्ञापन को लेकर मन में आये की क्या हमारी सरकार इन सब बातो को मान्यता देती है यदि नहीं देती है तो क्या इन्हें विज्ञापन चिपकाने की अनुमति देकर वो इन लोगो को बढ़ावा नहीं दे रही है?
मैंने सरकार को खूब कोसा फिर मेरे मन में विचार आया की ऐसा भी हो सकता है की ये बिना किसी परमिसन के चिपका गए हो और सरकार को इस बारे में पता ही ना हो, तो फिर सवाल खड़ा होता है उन कर्मचारियों पर जो उस बस में काम करते है, आखिर कब और कौन चिपका गया ये सब स्टीकर, और चिपका गया तो उन्होंने क्या इसकी शिकायत की, उन विज्ञापनों पर सम्बंधित व्यक्ति का पूरा पता phone नंबर सब कुछ था, क्या उन लोगो की खिलाफ शिकायत दर्ज हुयी और उसके बाद रोडवेज कर्मचारियों ने उन विज्ञापनों को हटाया क्यों नहीं?
आखिर कब ये देश बदलेगा, और कब ये सरकारे जागेगी इन सब चीजो को रोकने के लिए और समाज को सही दिशा देने के लिए।

धन्यवाद! जय हिन्द!!

Tuesday, August 11, 2015

काश मोदी प्रधानमंत्री होते!!!

काश मोदी प्रधानमंत्री होते!!!
हाँ बिलकुल आपने सही पढ़ा, काश मोदीजी प्रधानमन्त्री होते। 
अब आप कहेंगे अरे मोदीजी ही तो है प्रधानमन्त्री!!!
ये तो बिलकुल वैसा ही हो गया जो पिछले दस वर्ष से कांग्रेस कहती आ रही थी की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी है, पर सच्चाई देश और दुनिया जानती है की असल में प्रधानमन्त्री कौन था।
ठीक उसी प्रकार भाजपा कह सकती है की प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी है पर सच में ऐसा कुछ लगता तो नहीं है और यदि ऐसा है तो चुनाव से पहले वाले मोदी कोई और थे और अभी कुर्सी से चिपके हुए मोदी कोई और है।
मैं तो उन मोदीजी को जानता हूँ जो सीमा पर गोलीबारी होती तो बड़े ही जोशीले अंदाज में सैनिको का होंसला बुलंद करते और निवर्तमान सरकार को आड़े हाथो लेते थे, जो एक के बदले दस सर की बात करते थे, जो दुश्मन को उसके घर में जाकर मारने की बात करते थे। पर अभी जो मोदी कुर्सी पर बैठा है ये तो बड़े खामोश नजर आते है, पाकिस्तान रोज सीजफायर का उल्लंघन करता है, सीमा पार से रोज गोलीबारी होती है, हमारे सैनिक और मुठभेड़ में गाँव वाले भी शहीद हो जाते है पर इन कुर्सी वाले मोदीजी के मुहँ से एक शब्द भी नहीं निकलता। 
वो पुराने वाले मोदी जिनके नाम पर जनता ने वोट दिया और पूर्ण बहुमत से भारत सरकार चलाने की जिम्मेदारी सौपी थी यदि आज वही मोदी प्रधानमंत्री होते तो इस तरह चुप नहीं बैठे रहते वो दुश्मन को इस बात का अहसास दिला देते की अब देश का प्रधानमन्त्री मोदी है जो तुम्हे करारा जवाब देना जानता है पर ये जो मोदी कुर्सी पर बैठा है ये तो जवाब देना तो दूर की बात उन्ही के देश में जाने के निमंत्रण ढूंढते रहते है।
चुनाव से पहले वाले मोदी जब चीनी सैनिक हमारी सीमा में घुस आते थे तो निर्वतमान सरकार को कोसते थे उन्हें भली बुरी कहते थे, और आज जो मोदी कुर्सी पर बैठा है वो चीनी सैनिक हमारी सीमा में घुसकर कब्जा करते है तो चिन के राष्ट्रपति को भारत में झुला झुलाते है।
चुनाव से पहले वाले मोदी देश नहीं बिकने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा का नारा देते थे और अभी जो प्रधानमंत्री मोदी है वो बांग्लादेश के साथ डील करते है और हमारी धरती बांग्लादेश को सौप देते है।
ऐसे एक नहीं अनेको उदाहरण है जिनसे मुझे तो नहीं लगता की चुनाव से पहले जिन मोदी के लिए देश दीवाना था आज वही सेम टू सेम मोदी प्रधानमंत्री है।
काश आज वही चुनाव से पहले वाले मोदी देश के प्रधानमन्त्री होते।
जय हिन्द।
वन्दे मातरम्।।


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Wednesday, July 8, 2015

काश मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल होता

व्यापम में एक के बाद एक व्यापक स्तर पर हो रही मौत और प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की चुप्पी बहुत से सवाल खड़े करती है|

क्या मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल होता तो प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी इसी तरह चुप्पी साधे रखते? सारी दुनिया जानती है की वो बिलकुल इस तरह चुप्पी साध कर नहीं बैठते बल्कि अपने सारे तंत्र का उपयोग कर अब तक तो केजरीवाल को जेल में डाल चुके होते और वहाँ पर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया होता|

यानि जो कुछ मध्यप्रदेश में हो रहा है उसमे बिना कोई फेरबदल किये केवल वहाँ का मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल होता तो प्रधानमंत्रीजी तुरंत एक्शन लेते और अब तक इस सभी हत्याओं के आरोपी के तौर पर अरविन्द केजरीवाल को जेल करवा चुके होते|

क्या सिद्ध करना चाहते है हमारे प्रधानमंत्रीजी? आखिर वो क्यों भूल जाते है की अब वो देश के प्रधानमंत्री पहले है और किसी पार्टी के सदस्य बाद में है!!

पुरे देश में किसान आत्महत्या कर रहे थे और अभी भी कर रहे है लेकिन प्रधानमंत्रीजी कभी भी इस पर नहीं बोले, दिल्ली में एक किसान ने आत्महत्या की और तुरंत मोदीजी का ट्वीट आता है, भाजपा के सभी प्रवक्ता सुबह से लेकर शाम तक टीवी स्टूडियो में बैठकर खुद ही जज बनकर अरविन्द और आम आदमी पार्टी को सजा सुनाने में लगे हुए थे|

जिस प्रदेश से वो किसान आता है उसी प्रदेश राजस्थान में ठीक उसी दिन एक और किसान ने आत्महत्या की और उसके अगले कुछ दिनों में ४ किसानो ने पर किसी भी मौत पर प्रधानमन्त्री को दर्द नहीं हुआ क्योंकि वहाँ पर उस पार्टी की सरकार है जिस पार्टी से वे खुद ताल्लुक रखते है भारतीय जनता पार्टी|

तो प्रधानमंत्री की के लिए अब दो तरह के मापदंड है एक वो राज्य जहां पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और एक वो राज्य जहां पर बीजेपी की सरकार नहीं है| जिन गैर भाजपा शासित राज्यों में कुछ भी होगा तो प्रधानमंत्रीजी तुरंत उस पर बोलेंगे भी और कार्यवाही भी तुरंत करेंगे, और भाजपा शासित राज्यों में यदि कुछ भी गलत होगा तो
प्रधानमंत्रीजी मनमोहन सिंह अवतार धारण कर चुप्पी साध लेंगे और उनके तमाम प्रवक्ता स्टूडियों में आकर उन्हें क्लीन चिट देने में लगे रहेंगे और इसके पीछे उनके तर्क वही रहेंगे कानून अपना काम कर रहा है, इस मामले पर जांच चल रही है, आदि आदि

तो क्या अब हमे हर प्रदेश में आम आदमी पार्टी की सरकार चुननी पड़ेगी ताकि प्रधानमंत्रीजी उस पर अपनी पैनी नजर गडाए बैठे रहे और कुछ भी गलत हो तो तुरंत उस पर कार्यवाही कर सके?

फिर तो सच में भारत वासियों को चाहिए की हर प्रदेश में आम आदमी पार्टी की सरकार बनाए चाहे वो इस पार्टी से प्यार करते हो या नहीं करते हो, पर अपने प्रदेश के भले के लिए झाड़ू वालो की सरकार बनाए, क्योंकि ऐसा करने पर वो पूर्ण रूप से आश्वस्त हो सकते है की पहली बात तो आम आदमी पार्टी कभी को गलत काम करेगी नहीं और अगर संयोंग से उनसे कुछ गलती हो जायेगी तो मोदीजी तुरंत अपने पुरे तंत्र का प्रयोग करके उनको सजा दिला देंगे| जैसे अभी फर्जी डिग्री केस में आम आदमी पार्टी के विधायक और दिल्ली के भूतपूर्व कानून मंत्री जीतेन्द्र तोमर के केस में हुआ|

आम आदमी पार्टी से गलती हो गयी की उन्होंने तोमर की बातो पर भरोसा कर लिया लेकिन केंद्र और भाजपा ने उस पर कानून से ऊपर उठकर भी कार्यवाही करते हुए उन्हें बिना किसी पूर्व नोटिस के एक आतंकवादी की तरह भारी पुलिस दल के साथ उनके ऑफिस से उठवा लिया गया, जब उन्हें कोर्ट में पेश किया तो खुद कोर्ट ने इस कार्यवाही पर सवाल खड़े किये की आखिर ऐसा क्यों किया गया? जब पहले से ही इस मामले की सुनवाई कोर्ट में चल रही है, अगली सुनवाई की तारीख भी तय कर चुके है तो फिर क्यों उन्होंने ऐसा किया, क्या कोर्ट की कार्यवाही पर उनका भरोषा नहीं है?

खैर मैं यहाँ पर जीतेन्द्र तोमर की वकालत नहीं कर रहा हूँ, और नाही पार्टी की तरफ से उन्हें बचाने की कोई कोशिश की गयी, पार्टी का साफ़ मानना है की अगर जीतेन्द्र तोमर सही है तो वो सभी कानूनी प्रकिया से गुजरे और अपने आप को सही साबित करदे और अगर वो गलत है तो उन्हें सजा जरुर मिलनी चाहिए|
लेकिन इस मामले में इतनी जल्दी सभी कार्यवाही केवल इसीलिए हो पायी क्युकी ये मामला आम आदमी पार्टी से जुड़ा हुआ है वरना तो आप देख रहे है कितनी ही मंत्री और विधायको की फर्जी डिग्री के मामले में रोज खबर आती है पर कार्यवाही आजतक किसी पर भी नहीं हुयी|

तो इन सब से सिद्ध तो यही होता है की अगर हम चाहते है की किसी प्रदेश में कुछ भी गलत नहीं हो तो वहाँ पर अगले चुनाव में आम आदमी पार्टी को पूर्ण बहुमत दिलाये और सरकार बनाए फिर देखें वहाँ पर एक साफ़ सुथरी सरकार चलेगी, वो स्वतः ही साफ़ सुथरी सरकार होगी और गलती से कही कोई गन्दगी आ भी जायेगी तो
केंद्र में बैठ सरकार उसे एक पल भी बर्दाश्त नहीं करेगी|

जय हिन्द वन्दे मातराम

Monday, June 22, 2015

Holi In Italy इटली में हिन्दू भारतीय त्यौहार होली

This is the translation of original post of Italian news paper Mattino Di Padova
Link of original news
http://mattinopadova.gelocal.it/padova/cronaca/2015/06/21/news/holi-un-arcobaleno-umano-animato-dalla-musica-1.11653803

होली, संगीत के साथ एनिमेटेड मानवीय इन्द्रधनुष 
साल के सबसे रंगीन त्यौहार के युगानेओ में तीसरे संस्करण को अपार सफलता: 6 घंटे तक untoxic रंगो के पाउडर से लड़ाई (एक दूसरे पर रंग फेंककर)
पादोवा।  शेयरवुड फेस्टिवल में रंगो के वार्षिक त्यौहार होली उम्मीदों पर आयोजन किया गया: सबसे रंगीन तीसरे संस्करण को अपार सफलता मिली, 18000 (अठारह हजार) युवाओं ने नेरेओ रोक्को वियाले के उत्तर भाग में युगानेओ स्टेडियम में भाग लिया।
होली प्राचीनत्तम हिन्दू त्यौहार हो यक्ष होलिका को समर्पित है से लिया गया है, इस एक दिन के लिए लोग जात पात और उंच नीच को भूल जाते है। इस त्यौहार के दिन लोग एक दूसरे से रंगो के पाउडर के पैकेट लेकर एक दूसरे से भिड़ते है और मानवीय इन्द्रधनुष की शृंखला बन जाती है। 
आधी रात तक डीजे टीम के म्यूजिक के साथ रंगो का युद्द( एक दूसरे पर रंग फेंकना) पहले मुख्य मंच के सामने खेला गया और बाद में दूसरे मंच के सामने आयोजन किया गया। untoxic रंग प्रवेश द्वार पर खरीद के लिए उपलब्ध थे। 
(सुरक्षा पैमाने को मध्य नजर रखते हुए आयोजको को यहां के प्रशासन को सुनिश्चित करना होता है की कोई भी रंग किसी को नुक्सान ना पहुंचाए और रंग toxic ना हो, तो इसके लिए आयोजक प्रवेश द्वार पर खुद रंग बेचते है और केवल आप वही रंग इस्तेमाल कर सकते है, रिजर्वेशन के समय ही हिदायत दे दी जाती है की कोई भी घर से रंग लेकर नहीं आ सकता।)
विडियो(जब रंग एक दूसरे पर फेंकने का काउंटडाउन हुआ) अन्य फोटो के लिए ऊपर दिए गए इटालियन अखबार के लिंक पर देखे।
 

इस त्यौहार का आयोजन इटालियन लोग ही करते है और भाग लेने वाले भी इटालियन ही होते है, खैर सभी भाग ले सकते है किसी को मना नहीं है, लेकिन यहां हो भारतीय है वो केवल अपनी मेहनत मजदूरी में लगे रहते है तो इन आयोजनो में इतना भाग नहीं लेते है, ये मैंने इसलिए लिखा क्योंकि आजकल भारत में क्रेडिट चोरी में कुछ लोग मशहूर हो रहे है तो क्या पता कल को किसी को पता लगे की इटली में होली का त्यौहार मनाया जाता है तो क्रेडिट चोर जल्द से मीडिया में आकर बोलने लग जाए देखिये हमने कैसे होली को इतना फेमस बना दिया की विदेश में लोग होली मनाते है। 
 


Thursday, March 5, 2015

क्या सच में अरविन्द तानाशाह है?

शायद पार्टी बनने के बाद से लेकर आज तक ऐसा पहली बार हुआ है की अपने आप को "आम आदमी पार्टी" के समर्थक या वॉलंटियर कहने वाले लोग सोशल मिडिया पर अरविन्द की बुरी तरह आलोचना कर रहे है है। 
कारण?
हम्म्म …… 
सच पूछो तो असली कारण किसी को नहीं पता पर हाँ आलोचना और गालियों की कमी नहीं है, इल्जाम लगने शुरू हो गए है और जो कुछ लोग अब भी पार्टी के समर्थन में खड़े है उन्हें अंध भक्त की संज्ञा देना शुरू हो चुका है। 
कितना अच्छा चल रहा था सब कुछ पार्टी ने भारत के इतिहास में एक नया इतिहास रच दिया इतनी जबरदस्त सफलता के साथ और साथ ही साथ इस सफलता के अरविन्द का कद और भी बड़ा हो गया। 
खैर पहले ही बतादूं मेरे पास कोई पद नहीं "आम आदमी पार्टी" में और शायद जिन्हे हम सब बड़े नेता मानते है "आप" के उन्हें तो ये भी नहीं पता होगा की राम किरोड़ीवाल नाम का एक समर्थक है उनका। ये मैंने इसलिए लिखा तांकि ये साफ़ हो जाए की मैं किसी की वकालत करने के लिए नहीं लिख रहा हूँ, हाँ मेरे मन में विचार थे सो मैंने लिखना जरुरी समझा। 
जब तक लोग ये आवाज उठाते है की हमे पूरी जानकारी दी की ऐसा क्यों हुआ? तब तक तो ठीक है पर जब आप अरविन्द को भला बुरा कहना शुरू कर देते है, उन पर तानाशाह का आरोप लगाते है और भी आगे आप अभद्र भाषा का प्रयोग करते है तब अफ़सोस होता है की क्या हम वाकई में इतने कमजोर है की अपने आप को कुछ दिन के लिए रोक नहीं सके? कुछ दिन हम इन्तजार नहीं कर सकते इस पुरे घटनाक्रम पर पार्टी की तरफ से कोई स्पष्टीकरण आने तक?
अब लोग कह रहे है तानाशाह तो है ही अरविन्द उसने खिलाफ बोलने पर योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को बाहर का रास्ता दिखा दिया? मैं आपके इस तर्क से असहमत हूँ। 
यदि अरविन्द तानाशाह होता तो ये चार-पांच दिन से मसला चल रहा था, वो तुरंत अपना तानाशाही फरमान जारी करते और योगेन्द्रजी व प्रशांत जी को पार्टी से निष्काषित कर देते। पर उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया, पार्टी के राष्ट्रिय कार्यकारिणी की मीटिंग हुयी और उसमे खुद अरविन्द नहीं आये ताकि यदि किसी को उनके खिलाफ बोलना है आसानी से बोले, पता नहीं सामने सभी अच्छा बोले मजबूरी में क्योंकि तानाशाह जो ठहरे अरविन्द तो उनकी अनुपस्तिथि में आराम से आप बोल सकते है। 
कुल आठ घंटे "आप" की राष्ट्रिय कार्यकारिणी की बैठक चली तो इन आठ घंटो में जाहिर है हर तरह के मुद्दे उठे है, सवाल जवाब हुए है, आरोप प्रत्यारोप हुए है, सभी ने अपना पक्ष रखा है। योगेन्द्रजी और प्रशांत जी ने भी अपना पक्ष रखा है और हाँ इन विचारो की जंग में वो अकेले नहीं थे उनके भी समर्थन में आखिर में आठ वोट आये है और विपक्ष में 11 वोट गए तो कुल मिलाकर इस आठ घंटे की मीटिंग में एक तरह से माने दो टीम थी, एक तरफ आठ लोग थे दूसरी तरफ 11 लोग थे तो कमजोर तो दुसरा दल भी नहीं था। उन्होंने अपनी बात राखी है बस हाँ, वो 2 और लोगो को अपने विचारो से जोड़ने में नाकामयाब रहे और इसके फलस्वरूप उन्हें "आप" की "PAC" से बाहर जाना पड़ा। ना वो पार्टी से बाहर हुए है, ना उनकी सदस्यता खत्म हुयी है हाँ एक कमेटी के सदस्य नहीं है, तो यदि कुछ लोग जो इसे गलत मानते है की इन्हे बाहर क्यों निकाला वो क्या इस पार्टी में इसीलिए जुड़े है की कुछ लोगो को एक पद और प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए?
जब साफ़ कहा जाता है की यदि पद और टिकेट के लिए पार्टी से जुड़ना चाहते है तो प्लीज इस पार्टी में मत आइये और बहुत से दल है किसी में भी चले जाइए, अगर यहां आना है तो सेवा के लिए आये। 
तो जब हमे सेवा ही करनी है तो उसके लिए कोई पद है या नही उससे कौनसा फर्क पड़ता है?
अब लोग कहने लग गए की "आप" भी अन्य दलों के जैसे हो गयी जो खिलाफ बोलता है उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है भाई यदि सच में ऐसा होता तो मैं फिर दोहरा रहा हूँ ये मीटिंग करने की जरुरत ही नहीं थी यो ही एक आदेश निकल देते की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने हस्ताक्षर करके एक पत्र  दिया है की इन्हे PAC से हटाया जाए और हमने हटा दिया है, भाई मेरे आठ घंटे तक सभी 20-25  लोग एक बंद कमरे में बात क्यों करते? 
अब आप कह सकते है की अपनी छवि खराब ना हो इसके लिए ये सब नाटक किया गया, तो क्या अब छवि खराब नहीं हुयी? क्या अब लोग सवाल नहीं उठा रहे? क्या अब लोग भला बुरा नहीं कह रहे? थोड़ा तो अपना दिमाग लगाओ भाई!! या फिर जब तक पार्टी की तरफ से इस सारे प्रकरण पर कोई स्पष्टीकरण नहीं आता तब तक हम शांत रहे या ये मांग करते रहे की हम इस पर जल्द स्पष्टीकरण दे। 
योगेन्द्रजी और प्रशांत जी आज भी पार्टी में वरिष्ठ सदस्य है, किसी पद मिलने और न मिलने से क्या उनके वरिष्ठता या उनके अनुभवों पर कुछ असर पड़ता है क्या? और हाँ यदि आज बाहर है PAC से तो क्या कल वापस अंदर नहीं आ सकते? जिन आठ लोगो ने उनका समर्थन किया था की उनेह PAC से नहीं हटाया जाना चाहिए वो तो अभी भी अंदर ही है ना!!! उन्हें तो उठाकर बाहर नहीं किया? वो कल को इस की दुबारा मांग कर सकते है। 
अब ये मत कहना की भाई जो अरविन्द चाहते है वही होता है। 
अरविन्द तो कभी नहीं चाहता था की "आम आदमी पार्टी" लोकसभा चुनाव में पूरे देश में चुनाव लड़े, पर इसी राष्ट्रिय कार्यकारिणी में उस समय बहुमत उन लोगो के साथ चला गया जो चाहते थे "आप" पूरे देश में चुनाव लड़े। अरविन्द तानाशाह ही होता तो तब अपना तानाशाही फरमान जारी कर सकता था की नही मैंने कह दिया चुनाव नहीं लड़ेंगे तो नहीं लड़ेंगे! पर उन्होंने स्वीकार किया बहुमत सो जो निर्णय लिया उसको और स्वीकार ही नहीं किया अपनी जी जान भी लगाई इस लड़ाई को लड़ने के लिए खैर वो अलग बात है की फिर उसमे सफलता नहीं मिली। 
लिखने को बहुत कुछ है जब शुरू कर दिया तो अंत होने का नाम ही नहीं ले रहा, पर शायद इतना ज्यादा पढ़ते पढ़ते आप भी बोर हो जाएंगे तो बेहतर होगा यही कहते हुए मैं अपनी बात को विराम दूँ, संकट की घड़ी है सब साथ दे, आपके विचार है राय है तो उन्हें लोगो को सामने रखे, आरोप प्रत्यारोप से बचे, और हाँ कम से कम अरविन्द को तानशाह, लालची, सत्ता का घमंड ये उपमाए तो ना दे भगवान के लिए। 

और हाँ एक आखिर हिंट दे देता हूँ इस सारे घटनाक्रम को आप इस नजरिये से देख सकते है "अरविन्द को क्यों जरुरत पड़ी रामलीला मैदान से अपनी बात कहने की" कि जब से हमे ये अपार सफलता मिली है हमारे कुछ साथी उत्साह में घोषणा करने लग गए है अब हम यहां से चुनाव लड़ेंगे अब हम वहां से चुनाव लड़ेंगे, हम अभी कहीं से चुनाव नहीं लड़ेंगे हमारा पूरा ध्यान दिल्ली पर केंद्रित रहेगा, यहाँ के लोगो ने जो उम्मीद हमसे लगाई है हम उसे पूरा करने में अपनी जी जान लगाएंगे। 
मुझे तो कुछ तभी लगने लग गया था की पार्टी में सब कुछ ठीक तो नहीं है वरना एक राष्ट्रीय कन्वेनर को क्या जरुरत पड़ी ये बात भी रामलीला मैदान से घोषणा करने की। 


Teg: Arvind kejriwal, aam aadmi party, yogendra yaadav, prashaant bhushan, AAP, YO YO, Yo ya, Yo ya and PB, Yo&PB, NE, PAC,

Thursday, February 19, 2015

हम है देशी .. हम है देशी हाँ मगर हर देश में छाये है हम

Dr. Kumar Vishwas in live Concert
इस धरा से भी वफादारी का प्रण हमने चुना है।
पूरी दुनिया अपना घर है ये ही बचपन से सुना है॥
हम कि जो सरहद से दुरी पर हैं लेकिन लाम पर हैं।


हम की जो होली दिवाली ईद पर भी काम पर है॥
हमने पतझर भर लिया है खुद ही अपने सावनो में।
तब कही चुन चुन किरण भेजी है घर के आँगनों में॥
रौशनी के इस बड़े मेले में हम खोये नहीं है।
आंसुओ का एक समुन्दर हैं मगर रोए नहीं हैं॥
पापियो का कल मिटाकर खुद ही खुद को आज देगा।
हम इसी आशा में जीते हैं वतन आवाज देगा॥
क्रांति की ज्वाला यहाँ भी खुद में सुलगाएँ हैं हम।
हम हैं देसी हम हैं देसी हम हैं देसी हाँ मगर हर देश में छाए हैं हम॥
नई लाइने


डॉ कुमार विश्वास 

Tuesday, February 17, 2015

आम आदमी पार्टी दिल्ली सरकार का पहला दिन

दैनिक जागरण, 17 फरवरी 2015 
केजरीवाल केबिनेट का पहला फैसला, किसी अनाधिकृत निर्माण पर करवाई नहीं