Tuesday, May 31, 2016

सवाल क्या किया हम देशद्रोही हो गए

कई बार जब सोचने लगता हूँ अतीत में खो जाता हूँ, सरकारें तो आजादी के बाद से अब तक बनती आई है, इस बार ऐसा क्या हो गया की अपने देश के प्रधानमंत्री और उनकी केबिनेट के मंत्रियों से सवाल पूछना ही आप पर ऐसा आरोप लगा सकता है जिस आरोप  के आधार पर यदि पुलिस एक्शन लेने लगे  तो आपको तुरंत जेल हो और वो भी बिना जमानत वाली।
अर्थात आपको देशद्रोह के जुर्म में गिरफ्तार किया जाएगा।
अब कुछ मंदबुद्धि लोग कह सकते देशभक्तों की सरकार ही इस बार बनी है इससे पहले तो सभी देशद्रोहियों की सरकारें थी इसीलिए अब आपको पता चल रहा है।
तो क्या ये तथाकथित फर्जी राष्ट्रवादी लोग ये कहना चाहते है की माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी देशद्रोही थे? उनकी सरकार देशद्रोही थी? जिन अटल बिहारी वाजपेयी ने इस भारतीय जनता पार्टी नाम के संगठन को खड़ा किया और देश के कोने कोने तक पहुंचाया क्या ये लोग उन पर भी सवाल खड़े कर रहे है?

यदि नहीं कर रहे है तो क्या कोई बता पाएगा की उस समय सरकार पर सवाल उठाने वालो को तो देशद्रोही नहीं कहा जाता था? अब ही ऐसा क्यों हो रहा है?
कहीं ऐसा तो नहीं अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए वर्तमान सरकार देशद्रोह, हिन्दू, भारत माता, गाय, गोबर आदि का सहारा ले रही है?
जब भी कोई इस सरकार से सवाल करता है तो उन्हें या तो हिन्दू विरोधी, या देश विरोधी करार दे दिया जाता है। पर ये लोग भूल रहे है हम किसी तालिबानी देश में नहीं रह रहे है हम विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और लोकतंत्र में सवाल पूछना जनता का हक़ ही बल्कि कर्तव्य होता है की अपनी सरकारों से सवाल करे, जिन्हे हम चुनकर संसद में भेजते है उनसे समय समय पर सवाल पूछते रहे की हाँ बताइये आपने क्या किया, इस मुद्दे पर आपकी क्या राय है, हमे ये परेशानी है और हमारी इस आवाज को संसद में आपको पहुँचाना है क्योंकि आप संसद में हमारा प्रतिनिधित्व कर रहे है।
पर यहाँ तो जैसे ही हम ये सब बाते करते है तुरंत कुछ लोग अचानक से चिल्लाने लग जाते है ये देशद्रोही है, इसे मार डालो, इसे पिटो, इसे सजा दो, इसे पाकिस्तान भेज दो आदि आदि।
आम आदमी के पास अपनी बात इन सत्ता के मद में चूर हुए लोगो तक पहुँचाने के गिने चुने ही रास्ते है, पहले हम अपने नेताओ को पोस्टकार्ड भेजते थे, जब एक साथ हजारो पोस्टकार्ड सरकारों तक किसी एक ही बात को लेकर पहुँचते थे वो उन पर जरूर सोच विचार करती थी, फिर समय आया धरना प्रदर्शन का और अब सबसे बड़ा हथियार है सोशल मिडिया।

आप अपनी मांग, अपने सवाल सोशल मिडिया के द्वारा सरकार तक पहुंचा सकते है। पर ये क्या जैसे ही आप इस सरकार से सवाल करते है की किसान आत्महत्या क्यों कर रहे है तो अचानक से इनकी साइबर टीम का एक झुण्ड आप पर टूट पड़ता है (इसमें उस झुण्ड का कसूर बस इतना है की वो अपनी रोजी रोटी के लिए उनकी साइबर सेल में काम करते है और उन्हें इसी बात के पैसे मिलते है की कौन कितनी गालिया निकालता है पुरे दिन, कौन कितनी लोगो को देशद्रोही की धमकी देता है, कितने लोगो को पाकिस्तान भेजने के लिए कहता है।
ये कैसी सरकार चुन ली हमने जिससे सवाल पूछना ही गुनाह हो गया, और तो और कुछ लोग अपनी चमचागिरी चमकाने के चक्कर में जबरदस्ती ही इस सवाल जवाब की बहस में कूद पड़ते है और सवाल करने वालो पर तरह तरह के आरोप लगाकर कुछ लोगो की नजरो में आना चाहते है जिससे उन्हें भी सरकार कोई पद्म पुरस्कार दे सके आया किसी राज्य का राज्यपाल/उप राज्यपाल बना सके और वो इसमें बखूबी कामयाब भी हो रहे है, बोले तो चमचो की चाँदी हो रही है (आशा करता हूँ बिना नाम लिए ही आप समझ गए होंगे की मैं किनकी बार कर रहा हूँ)।
तो इस बार आपने और हमने सरकार चुनकर अपने मूलभूत अधिकारों को ही गिरवी रख दिया है, अब आप चुपचाप सहते रहो जो भी ये सरकार कहे उसे मानते रहो, पानी नहीं मिलता प्यासे मरते रहो पर सरकार से मत कहो की हमें पानी क्यों नहीं मिलता, कर्जे के तले दबा किसान आत्महत्या करले पर सरकार से ये मत पूछो की बड़े बड़े पूंजीपतियों का अरबो खरबों रूपये का लोन माफ़ कर दिया जाता है मुझ गरीब किसान का कुछ लाख रूपये का लोन माफ़ क्यों नहीं कर सकते?

अफ़सोस
दो साल तो निकल गए है तीन साल और झेलना ही पडेगा पर उम्मीद है की हम भारत के लोग इस बार सोच समझ कर सरकार चुनेंगे, जुमलों के बहकावों में नहीं आएंगे और नाही विज्ञापन देखकर प्रोडक्ट खरीदेंगे।
जय हिन्द! वन्दे मातरम! भारत माता की जय!


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