Saturday, November 20, 2021

कृषि बिल वापस लेना मोदी का झुकना या एक और गहरी चाल

जिन्हे कभी किसान नहीं माना, 

कभी खालिस्तानी तो कभी पाकिस्तानी, कभी विदेशी फंडिंग, कभी राष्ट्रिय सुरक्षा के लिए ख़तरा और ना जाने कैसे कैसे बदनाम किया गया!  

तमाम गोदी मिडिया (अनऑफिसल भाजपा प्रवक्ता) और भाजपा नेता दिन रात टीवी पर एक भी बात कहते रहे की किसान तो खुश है और इन तीन कृषि कानूनों का समर्थन कर रहे है, इसके लिए खेतो में कुछ कलाकारों को किसान के भेष में बिठाकर उनसे बाइट लेकर वो भी टीवी पर दिखाया गया की कैसे इस देश का किसान इन तीन कृषि  कानूनों के साथ है।  

कृषि मंत्री भी ट्वीट कर बताते रहे की किसान यूनियन (उनके हिसाब से  यूनियन) के लोग इस बिल के साथ है और मंत्री जी से भेंट कर मोदी जी और कृषि मंत्री का धन्यवाद भी कर रहे है किसानों के हित में ये बिल लाने के लिए।  

इन सबके बावजूद भी जब आंदोलन बढ़ता ही रहा था फिर गन्दी चालें भी चली गई, किसानों की हत्या, अपने आदमियों को किसान आंदोलन के बीच भेजकर उनसे गलत काम करवाना, खालिस्तान समर्थन में कुछ बुलवाना और अलग अलग तरीके से आंदोलन को तोड़ने की कोशिश।  

खूब डराया गया, खूब बदनाम किया गया, हत्याएं भी शुरू कर दी फिर भी आंदोलन कमजोर नहीं पड़ा।  

खुद मोदी और उनकी केबिनेट के लोग बोल रहे थे की किसान तो खेत में आंदोलन तो कुछ लोग कर रहे है बस और वो किसान भी नहीं है, कुछ सौ  या हजार लोग ही इन बिलों के विरोध में आंदोलन कर रहे है बाकि तो पूरे देश के किसान खुश है।  

ऐसे में ऐसी क्या मजबूरी हो गई की मोदी जी बिल वापस लेने की घोषणा कर दी?

जिस व्यक्ति ने नोटबंदी  में  पुराने नोट बदलवाने के लिए एक दिन भी नहीं बढ़ाया उसने तीनों कृषि बिल वापस क्यों ले लिए?

अब सब एक ही बात बोल रहे है की चुनाव है इसीलिए हार के डर से कृषि बिल वापस ले लिए!

अगर आप भी ऐसा ही सोच रहे है तो ये आपकी ग़लतफ़हमी है।  

खुद मोदी को भी पता है की 700 से अधिक किसान शहीद हो गए, एक साल से आंदोलन कर रहा किसान, सरकार की तरह तरह की यातनाएं सहने वाला किसान अगर बिल वापस भी ले लिए तो भी मोदी को इस बार तो वोट नहीं देगा, इसके उलट मोदी समर्थक लोग भी थोड़ा मोदी से नाराज होंगे इन बिलों को वापस लेने से ये सब जानते हुए भी मोदी ने ये तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा क्यों की?

अब आते है असली मुद्दे पर।  

ये बात सही है की किया ये सब कुछ चुनावों के चलते ही है, लेकिन इसलिए नहीं की किसान भाजपा को वोट देंगे। क्योंकि जब तक EVMs (मशीन) है तब तक मोदी को किसी के वोट को जरुरत  नहीं है वो बिना वोट भी जायेगा। 

अब आपके मन में दो सवाल आ रहे होंगे:

1. जब मशीन से ही जीतना है तो फिरकृषि कानून वापस लेने की जरुरत कहाँ पड़ी 

2. मशीन से ही जीत रहे है तो फिर उपचुनाव में  क्यों हार गए?

यही सबसे बड़ी चाल है, उपचुनाव में हारकर उन आवाजों को दबाया जाता है जो कहती है मशीन में गड़बड़ी है।  

लोकतंत्र में झूंठा ही सही लेकिन चुनावी प्रकिया में जनता का भरोसा बनाये रखना बहुत जरुरी होता है।  

पहला सवाल भी अभी जिन्दा है की मशीन से ही जीत सकते है तो फिर कृषि कानून वापस क्यों ले रहे है ये जानते हुए भी किसान वोट नहीं देंगे।  

इसका जवाब ऊपर की लाइन में है "लोकतंत्र में झूंठा ही सही......... "

आज पंजाब और हरियाणा में लोग खुलेआम ये  नहीं कह पा रहे की वो भाजपा समर्थक है, भाजपा नेताओं को गाँवों में घुसने नहीं दिया जा रहा है, दो साल पहले लोग बड़े शान से भाजपा का झंडा घरों पर लगा रहे थे वो भी सबने उतार लिए, और तो और ऐसा भी सुनने में आया है की भाजपा नेता भी अपनी गाडी से भाजपा के सिंबल हटाकर ही कही आ जा रहे है, क्योंकि जैसे ही बीजेपी का सिम्बल दिखता है किसानों के विरोध का सामना करना पड़ता है।  

और ये भी हो सकता था की कोई भाजपा की टिकट  पर चुनाव लड़ने तक को तैयार नहीं होता तो ऐसे में मशीन से भी भाजपा कैसे जीत पाती?

यदि इन सभी विरोधों के बावजूद भी मशीन से गड़बड़ी करके चुनाव जीत जाये तो सरेआम ये साबित हो जायेगा की मशीन में गड़बड़ी हुई है, तो जनता को चुनावी प्रकिया पर झूंठा भरोसा बना रहे उसके लिए ये बिल वापस लेने वाली हारकर जीतने वाली चाल चली गई है, ताकि भाजपा की टिकट पर उम्मीदवार खड़ा किया जा सके और फिर मशीन से गड़बड़ी की जा सके, इसके बाद अगर जीत जाए तो सबके मन में यही विचार आएगा की कृषि क़ानून वापस ले लिए इसीलिए लोगो ने भाजपा को वोट दे दिया और वो जीत गए(जबकि हकीकत में ऐसा होगा नहीं) . 

तो क्या अब ये मान ले की भाजपा मशीन में गड़बड़ी करके जीत जायेगी?

नहीं! ये नहीं मान सकते, क्योंकि मशीन में गड़बड़ी कुछ प्रतिशत वोट शेयर को इधर उधर करने की होती है, कैसे मानों केंडिडेट A को 10 वोट मिले और केंडिडेट B को 90 वोट मिले ऐसे में अगर २०% वोट शेयर भी ट्रांसफर किया जाता है तो भी A केंडिडेट को 28(10+18) वोट और B केंडिडेट को 72 (90-18) वोट मिलेंगे और EVMs  गड़बड़ी के बावजूद भी केंडिडेट A हार जायेगा।  

 तो कृषि बिल वापस लेकर मशीन में गड़बड़ी कर सके इसकी जमीन तैयार की जा रही है।  

उम्मीद है देश की जनता भाजपा का ये खेल समझ पाएगी और इन चुनावों में इन्हे सबक सिखाएगी। 


Monday, October 18, 2021

गांधी जी और सावरकर के माफीनामे का सच - The real story of Gandhi ji and Savarkar

गांधी करुणामय थे, सदाशय थे। 

The real story of Gandhi and Savarkar

वे महान आत्मा इसीलिए कहलाए कि उन्होंने ने आततायियों को भी इज़्ज़त बख़्शी। उनको भी, जो अलग रास्ते पर चले। 

लंदन में 1909 में सावरकर ने गांधीजी से उनके विचारों पर तकरार की थी। 

बरसों बाद, जब सावरकर कालकोठरी से अंगरेज़ों के सामने गिड़गिड़ा रहे थे तो गांधीजी ने अंगरेज़-राज द्वारा घोषित दया-घोषणा का लाभ सावरकर को भी मिले, ऐसी अपील की। 

यह उनकी दरियादिली थी, जिसे सावरकर को गांधीजी के आशीर्वाद सरीखा बताया जा रहा है। 

रक्षामंत्री ने तो सावरकर के माफ़ीनामों के पीछे भी गांधी को खड़ा कर दिया। यह जाने बग़ैर कि गांधीजी ने लिखकर सावरकर को स्वातंत्र्य-वीर नहीं, स्वातंत्र्य-विरोधी ठहराया था। 

सही है कि गांधीजी ने अपने साप्ताहिक 'यंग इंडिया' के 26 मई, 2019 के अंक में सावरकर की रिहाई की सिफ़ारिश की। मगर साफ़-साफ़ यह कहते हुए कि — "दोनों सावरकर भाइयों ने अपने राजनीतिक विचारों को व्यक्त कर दिया है और दोनों ने कहा है कि वे किसी भी क्रांतिकारी विचार का समर्थन नहीं करते हैं और यह भी कि यदि उन्हें छोड़ दिया जाता है तो वे सुधार क़ानून के तहत काम करेंगे ... दोनों साफ़ कहते हैं कि वे अंगरेज़ों के राज से स्वतंत्रता नहीं चाहते। बल्कि, इससे उलट, वे अनुभव करते हैं कि भारत का भविष्य अंगरज़ों के सहयोग से बेहतर सँवारा जा सकता है ..."।  

गांधीजी के इस कथन को संघ-विचारक और नेता छिपा जाते हैं। वे यह भी नहीं बताते कि रिहाई के बाद सावरकर ने क्या कभी अंगरेज़ों के ख़िलाफ़ आंदोलन छेड़ गांधीजी को ग़लत साबित करने की चेष्टा की? 

सचाई यह है कि सावरकर गांधीजी की हत्या के षड्यंत्र में शरीक़ पाए गए थे। 

हत्याकांड की जाँच के लिए भारत सरकार द्वारा गठित आयोग ने अपने अंतिम निष्कर्ष में "सावरकर और उनकी मंडली (ग्रुप)" को गांधीजी की हत्या के षड्यंत्र का गुनहगार ठहराया गया। 

नए तथ्यों के रोशनी में पहले की जाँच — जिसके फलस्वरूप गोडसे को फाँसी हुई थी — को आगे बढ़ाते हुए भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जेएल कपूर को उस षड्यंत्र की जाँच का ज़िम्मा सौंपा था। कपूर कमीशन ने गवाहों और दस्तावेज़ों की लम्बी पड़ताल के बाद यह निष्कर्ष व्यक्त किया: 

“All these facts taken together were destructive of any theory other than the conspiracy to murder by Savarkar and his group.” 

भावार्थ: सभी तथ्यों का संज्ञान एक ही बात साबित करता है कि (गांधीजी की) हत्या का षड्यंत्र सावरकर और उनके समूह ने रचा। 

पता नहीं अब किस मुँह से उन्हीं सावरकर को गांधीजी की ही ओट देकर इज़्ज़त दिलवाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। यह सिलसिला नया नहीं है। 2014 से इसकी गति बढ़ी। मगर अब तो संविधान की शपथ लेकर आए मंत्रियों तक को इस दुष्प्रचार में झोंका जा रहा है। 

 

Text from twitter thread by Om thanvi (@omthanvi)
Link: https://twitter.com/omthanvi/status/1449954524324524033


Saturday, July 3, 2021

दो जमींदारों की कहानी

 एक गाँव में दो जमींदार थे, एक के पास 10 बीघा जमीन थी, तो दूसरा 500 बीघा जमीन का मालिक था।  

दोनों ही अपनी अपनी जगह मेहनत करते और अच्छी फसल तैयार करते। 

एक साल पानी की कमी के कारण चारों तरफ फसलें  बर्बाद हो रही थी लेकिन 10 बीघा जमीन वाले जमींदार ने इस खतरे को समय पर भांप लिया और उसके अनुसार तैयारी शुरू कर दी, फिर चाहे पानी का भंडारण हो या बूँद बूँद सिंचाई और अगर बारिश आये तो उस पानी का भी अलग से भंडारण ताकि समय पर उसे भी काम लेकर फसल को सूखने से बचाया जा सके और अच्छी पैदावार हो सके। 

वहीँ दूसरी तरफ 500 बीघा जमींन वाला मालिक अपने घमंड में चूर रोज नए नए कपडे पहनकर अकड़ से गाँव में घूमता और यदि कोई उसे कहता की 

"भाई देख दूसरे जमींदार को कैसे उन्हें पहले से सारी व्यवस्था ली तुम भी कुछ तैयारी  करो"

तो वो कहने वाले की हंसी उड़ाते हुए उस छोटे जमींदार पर भी ताना मारता। 

समय निकल गया बड़े जमींदार ने पहले से कोई बंदोबस्त नहीं किया तो फसल सूखने  लग गई, थोड़ा बहुत जो उसका इंतजाम था उससे सारी फसल को बचाया नहीं जा सकता था।  

अब समय आया फसल कटाई का और अनाज निकलवाने का, छोटे जमींदार की सूझबूझ से उनकी फसल बच गई और शानदार फसल तैयार हुई तो उसके यहाँ 10 बीघा में 50 बोरी (50 क्विंटल) अनाज हुआ, उधर 500 बीघा वाले की आधी से ज्यादा फसल पानी की कमी से सूख गई, जो बची उसमे भी कुछ हिस्से में हल्का अनाज निकला और कुछ हिस्सा जिसे  वो बचा पाया में शानदार अनाज निकला और उसके यहाँ भी 90 बोरी (90 क्विंटल) अनाज निकला। 

सारे गाँव में ये चर्चा होने लगी की कैसे छोटे जमींदार ने समय रहते सारी  तैयारी कर ली थी तो इस अकाल का भी असर उसकी फसल पर नहीं  हुआ और उसके यहाँ 50 बोरी अनाज हुआ जबकि बड़े जमींदार ने अपनी फसल पर ध्यान नहीं दिया और उसके यहाँ बहुत सी फसल सूख गई, नष्ट हो गई।  

अब बड़े जमींदार के अहंकार को ये कहाँ पसंद था की लोग छोटे जमींदार तारीफ़ करे और बड़े जमींदार को निक्कमा कहे।  

तो बड़े जमींदार ने अपने सभी मजदूरों को कहा की सारे गांव में हर जगह इस बात का चर्चा करे की इस साल इतने अकाल के बावजूद भी गाँव में सबसे ज्यादा अनाज का रिकॉर्ड उसके नाम है उसके यहाँ 90 बोरी (90 क्विंटल)अनाज हुआ है जबकि बहुत से लोगो के यहाँ 1 बोरी भी नहीं हुआ और तो और उस छोटे जमींदार के यहाँ भी केवल 50 बोरी (50 क्विंटल) बोरी ही अनाज हुआ है। 

जब उठते बैठते सब जगह हर व्यक्ति यहीं सुनने को मिलने लगा की सबसे ज्यादा अनाज बड़े जमींदार के यहाँ ही हुआ है लोगो की जुबान पर यही बात चढ़ गई की इस बार  बड़े जमींदार ने अकाल को भी हरा दिया और उसके यहाँ इतना अनाज हुआ जितना किसी के यहाँ नहीं हुआ।  

लोग असली बात को सोच ही नहीं पाते थे की उसके यहाँ 500 बीघा में 90 क्विंटल अनाज  हुआ है जबकि छोटे जमींदार  महज 10 बीघा में 50 क्विंटल अनाज हुआ है।  

गाँव के लोग भोले थे उनके सामने जिस तरह की बात पूरे दिन होती सुनाई देती उससे आगे वो सोच भी कहाँ पाते थे और बड़ा जमींदार उसी अकड़ से गाँव में घूमता और अपनी वाह वाही सुनता की कैसे अकाल के बावजूद  भी उसके यहाँ सबसे अधिक अनाज हुआ है। 

जबकि वो खुद और उसके मजदूर भलिभांति ये बात जानते थे की उस बड़े जमींदार की अयोग्यता के कारण उनकी नजरों के सामने आधी से ज्यादा फसल सूख कर ख़त्म हो गई और वो उस सूखती फसल को बचाने के लिए कुछ नहीं कर पाए क्योंकि उस बड़े जमींदार ने समय रहते छोटे जमींदार की तरह इंतजाम नहीं किया था। 

 

नोट:ये कहानी काल्पनिक है, इसे मोदी सरकार के टीकाकरण अभियान से जोड़कर ना देखा जाए। धन्यवाद 

 

Friday, April 30, 2021

रोहित सरदाना की मौत भी चढ़ गई TRP की भेंट

आज अचानक से सोशल मिडिया पर एक पोस्ट देखने को मिली हिंदी समाचार जगत के दिग्गज पत्रकार रोहित सरदाना की कोविड की वजह से मृत्यु हो गई।  

एकदम से ये पोस्ट दिखी तो यकीन नहीं कर पाया, तुरंत आज तक का ट्विटर हेंडल खोला (वह प्रतिष्ठान जहाँ  रोहित सरदाना काम करते थे) वहां पर ऐसे कोई पोस्ट नहीं थी।  

तुरंत आजतक चैनल खोला वहां पर ऐसी कोई खबर नहीं दिखाई जा रही है।  

Rohit Sardana
फोटो क्रेडिट : रोहित सरदाना ट्विटर प्रोफ़ाइल

मैं पोस्ट करने से डर  रहा था की कही ये खबर अफवाह तो नहीं है किसी ने ऐसे ही उड़ा दी होगी, लेकिन खबर पर यकीन भी करना जरुरी था क्योंकि ये पोस्ट किसी और ने नहीं बल्कि Zee  News  के पत्रकार सुधीर चौधरी की थी तो ऐसा हो नहीं सकता इतना जिम्मेदार व्यक्ति अफवाह के आधार पर कोई पोस्ट करेगा।  

मन मानने को तैयार नहीं था, इधर सोशल मिडिया पर रोहित सरदाना को श्रदांजलि देने के मेसेज की बाढ़ सी आ गई, फिर आजतक चैनल को देखा, फिर से आजतक के ट्विटर हेंडल को चेक किया कही कोई जिक्र तक नहीं था, मानो उन्हें पता ही नहीं हो या उन्हें इसकी कोई परवाह ही नहीं हो।  

सोशल मिडिया पर आवाज भी उठने लग गई की ये कैसा चैनल ही जो अपने पत्रकार की मृत्यु की खबर से ज्यादा एग्जिट पोल दिखाने को महत्त्वपूर्ण मानता है, लोग आजतक को लानत भेजने लग गए, लगभग एक घंटे से भी ज्यादा समय बीत गया पर आजतक अपनी मस्ती में मस्त था। 

फिर अचानक से आजतक के ट्विटर हेंडल पर भी पोस्ट आई और आजतक पर एक वीडियो क्लिप भी चलाई गई जिसमे रोहित सरदाना को श्रदांजलि दी जा रही थी, बैकग्राउंड में सिसकियों वाला साउंड डाला गया, फिर आगे क्लिप में दिखाया गया एंकर जो ये खबर दे रहे थे वो रो रहे थे, बोलते बोलते उनका गाला भर रहा था।  नीचे आजतक का वो वीडियो है आप खुद भी देखिये।  

अब मैं इसके पीछे की कल्पना कर रहा हूँ की आजतक के स्टूडियों में क्या हुआ होगा उस समय (परिस्थितियो के आधार पर ये मेरी एक कल्पना मात्र है अगर इसका हकीकत के साथ मेल होता है तो ये महज एक संयोग होगा)

स्टूडियों में खबर आई होगी, रोहित सरदाना जी नहीं रहे 

जिसे करंट खबर चलानी होती है (आज तक सबसे तेज) उसने ये हेडलाइन टाइप करना शुरू कर दिया होगा इतने में डायरेक्टर साहब (मालिक) का आदेश आ गया होगा 

रूको, अभी खबर नहीं चलानी है

इसके बाद जिस तरह से ये क्लिप बनाई गई है तो ऐसा हुआ होगा की 

आदेश दिया गया, शानदार क्लिप तैयार करो, एंकर को बैठाया गया होगा, उसे रोने की एक्टिंग करते हुए ये समाचार बोलने को कहा गया होगा।  

लाइट, कैमरा, एक्शन 

और शुरुआत 

क्या पता कई बार रीटेक भी हुआ होगा, कट  कट  कट ओवरएक्टिंग ज्यादा हो गई, रोने में फिलिंग नहीं आई वगैरह वगैरह .... 

इनके सबके बाद ये सभी क्लिप दी गई वीडियो एडिटर को, और वीडियो एडिटर ने शानदार बैकग्राउंड  म्युजिक और सिसकिया डाली गई, कई बार डायरेक्टर साहब ने देखा होगा कुछ मोडिफिकेशन भी करवाया होगा, आखिर में शायद ऐसे कुछ  कहा होगा 

शाबाश, शानदार अब तैयार हुई है शानदार क्लिप 

अब चलाओ मस्त TRP  आएगी 

और फिर ये क्लिप चली होगी 

अगर सच में ऐसा ही स्टूडियों में हुआ होगा तो

जिस संस्थान ने अपने वरिष्ठ पत्रकार की मृत्यु की खबर को भी अपनी TRP  की भेंट चढ़ा दी उस संस्थान से क्या उम्मीद करेंगे?

बहुत दुखद मौत को भी TRP की भेंट चढ़ा देना। 

अगर ऐसा नहीं हुआ होगा तो मेरी समझ से बाहर है, ये खबर फलेश करने में आजतक को एक घंटे से भी ज्यादा का समय क्यों लगा।  

दुनिया मैं कुछ भी कही भी होता है उसकी तुरंत सबसे पहले एक टेक्स्ट लाइन फलेश  हो जाती उसके बाद उस पर विस्तार से जानकारी आती रहती है और प्रोग्राम होते रहते है लेकिन इतनी बड़ी खबर को कोई जगह तक नहीं दी गई।  

शायद आजतक को भी ये एहसास था की सभी लोग इस खबर की पुष्टि के लिए आजतक को बार बार देख रहे है तो क्यों ना इतना शानदार वीडियो बनाया जाए जिससे खूब TRP  बटोरी जा सके।  

ईश्वर रोहित सरदाना जी आत्मा  को अपने श्री चरणों में स्थान दे और उनके परिवार को ये बड़ा दुःख सहन करने की शक्ति दे।  

और TRP के भूखे भेड़ियों को थोड़ी सद्बुध्दि दे।