Thursday, April 27, 2017

काजल के पर्वत पर चढ़ना


एक बार जीवन का रथ, बढ़ा शुक्र के पथ पर,
और राजनीति ने डोरे डाले फिर सेवा के व्रत पर !

लक्ष्मण रेखा बड़ी क्षीण है, बड़ी क्रूर है काई,
कदम कदम पर फिसलायेगी रेशम सी चिकनाई !!

काजल के पर्वत पर चढ़ना, और चढ़ कर पार उतरना,
बहुत कठिन है निष्कलंक रह करके ये सब करना !!!

पर जब जब आप सहारा देते, इनका सर सहलाते,
जब जब इनको अपना कहकर अपने गले लगाते,
तब तब मुझको लगता है,  ये जीवन जी लेंगे,
नीलकंठ कि तरह यहाँ का सारा विष पी लेंगे !!!!"


काजल के पर्वत पर चढ़ना, और चढ़ कर पार उतरना
काजल के पर्वत पर चढ़ना, और चढ़ कर पार उतरना


8 comments:

  1. बालकवि वैरागी जी की अद्भुत कविता।।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 23 मई 2020 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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