“चाट भाई चाट” के एक एपिसोड में एक मोहल्ले में चौराहे की ट्रेफिक लाईट बहुत समय से ख़राब थी, जिससे कोई नियमों का पालन नहीं करता था क्योंकि बत्ती नहीं तो नियम नहीं और रोज एक्सीडेंट होने लग गए, मोहल्ले के लोगो ने बहुत बार शिकायत की लेकिन कोई सुनने को तैयार ही नहीं था, रोज होते एक्सीडेंट पर कोई बोलता तो सरकार में बैठे लोग उन्हें ही गलत ठहराकर उन्हें चुप करा देते या उलटे उन्हें ही आरोपी बनाकर सजा सुना देते।
इस तानाशाही के चलते धीरे धीरे लोगो ने चुप रहना स्वीकार कर लिया, रोज होती मौत से सभी आहत थे लेकिन बोलने की हिम्मत कोई नही कर पा रहा था! अंत में मोहल्ले की एक बहादुर शेरनी ने प्रण किया की जब तक बत्ती ठीक नहीं होते और ट्रेफिक के नियम सही तरीके से लागू नहीं होते वो भोजन ग्रहण नहीं करेगी चाहे उसकी जान ही क्यों ना चली जाये।
पहले कुछ दिन तो सबने उसे नजर अंदाज किया, जिन्हें वो बत्ती ठीक करनी थी वो अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए वहाँ से कुछ दिनों के लिए पलायन कर गया, सोचा 1-2 दिन में खुद ही भूख लगेगी तो अपनी हठ छोड़ देगी और उन्हें वो बत्ती ठीक नहीं करनी पड़ेगी, लेकिन वो शेरनी अपनी जिद्द की पक्की थी क्योंकि रोज होने वाले एक्सीडेंट उसे झकझोर रहे थे।
धीरे धीरे लोग उस शेरनी के साथ अपनी आवाज बुलंद करने और बत्ती ठीक करने की मांग चारों तरफ से उठने लगी, अब तो धीरे धीरे देश के हर कौने में जहाँ भी बत्ती ख़राब थी वहाँ से लोग अपनी आवाज उठाने लग गए की ये ट्रेफिक लाईट ठीक होनी ही चाहिए कब तक लोग यो ही एक्सीडेंट में मरते रहेंगे।
अब तो जो अधिकारी विदेश भाग गया था उसे लोग विदेशों में भी कोसने लग गए की आखिर तुम बत्ती ठीक क्यों नहीं करना चाहते रोज एक्सीडेंट में लोग मर रहे है क्या तुम यही चाहते हो लोग ऐसे ही मरते रहे और उस अधिकारी के पास मुहं छुपाने के अलावा और कोई उपाय शेष नहीं था। दुनिया कहाँ की कहाँ पहुँच गयी है और तुम्हारे देश में अभी भी एक ट्रैफिक लाईट ठीक करवाने के लिए किसी को आमरण अनशन करना पड़ रहा है।
नौ दिन तक वो अपनी जिम्मेदारी से भागता रहा लेकिन वो बहादुर शेरनी भी अपनी जिद्द पर अड़ी रही, वो अधिकारी आखिर कितने दिन तक अपनी जिम्मेदारी से भाग सकता था, आखिर में उसे वापस देश में तो लौटना ही था।
चारों तरफ से जो आलोचना हो रही थी और देश और विदेशों में उस अधिकारी की जो थू थू रही थी उससे बचने का केवल एक ही उपाय था की ट्रेफिक लाईट को सही किया जाया अब मरता क्या ना करता आख़िरकार ना चाहते हुए भी उसे वो ट्रेफिक लाईट ठीक करने के आदेश जारी करने ही पड़े।
एक औरत की जिद्द और पूरे देश से उसे मिले सर्मथन के आगे वो अधिकारी हार गया और वो बहादुर शेरनी जीत गयी।
अब वो घमंडी अधिकारी ये कैसे स्वीकार कर सकता था की लोग ये कहे की एक औरत ने उस अधिकारी को आखिर झुका ही दिया तो इससे बचने के वो अधिकारी और उसके कुछ चापलूस चारों तरफ ये कहने लग गए की देखो हमारे साहब ने आपके मोहल्ले की बत्ती ठीक करने के आदेश दे दिए है।
“बलात्कार-मृत्यदंड के प्रावधान का श्रेय लेने की से इसका कोई लिंक नहीं है ।"
#DeathForChildRapists
#Thanks2Swati
#SwatiFightsForJustice
#swatifasts4justice
#JusticeforAsifa
#Justice4RapeVictims
#RapeMuktBharat
#RapeRoko
इस तानाशाही के चलते धीरे धीरे लोगो ने चुप रहना स्वीकार कर लिया, रोज होती मौत से सभी आहत थे लेकिन बोलने की हिम्मत कोई नही कर पा रहा था! अंत में मोहल्ले की एक बहादुर शेरनी ने प्रण किया की जब तक बत्ती ठीक नहीं होते और ट्रेफिक के नियम सही तरीके से लागू नहीं होते वो भोजन ग्रहण नहीं करेगी चाहे उसकी जान ही क्यों ना चली जाये।
पहले कुछ दिन तो सबने उसे नजर अंदाज किया, जिन्हें वो बत्ती ठीक करनी थी वो अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए वहाँ से कुछ दिनों के लिए पलायन कर गया, सोचा 1-2 दिन में खुद ही भूख लगेगी तो अपनी हठ छोड़ देगी और उन्हें वो बत्ती ठीक नहीं करनी पड़ेगी, लेकिन वो शेरनी अपनी जिद्द की पक्की थी क्योंकि रोज होने वाले एक्सीडेंट उसे झकझोर रहे थे।
धीरे धीरे लोग उस शेरनी के साथ अपनी आवाज बुलंद करने और बत्ती ठीक करने की मांग चारों तरफ से उठने लगी, अब तो धीरे धीरे देश के हर कौने में जहाँ भी बत्ती ख़राब थी वहाँ से लोग अपनी आवाज उठाने लग गए की ये ट्रेफिक लाईट ठीक होनी ही चाहिए कब तक लोग यो ही एक्सीडेंट में मरते रहेंगे।
अब तो जो अधिकारी विदेश भाग गया था उसे लोग विदेशों में भी कोसने लग गए की आखिर तुम बत्ती ठीक क्यों नहीं करना चाहते रोज एक्सीडेंट में लोग मर रहे है क्या तुम यही चाहते हो लोग ऐसे ही मरते रहे और उस अधिकारी के पास मुहं छुपाने के अलावा और कोई उपाय शेष नहीं था। दुनिया कहाँ की कहाँ पहुँच गयी है और तुम्हारे देश में अभी भी एक ट्रैफिक लाईट ठीक करवाने के लिए किसी को आमरण अनशन करना पड़ रहा है।
नौ दिन तक वो अपनी जिम्मेदारी से भागता रहा लेकिन वो बहादुर शेरनी भी अपनी जिद्द पर अड़ी रही, वो अधिकारी आखिर कितने दिन तक अपनी जिम्मेदारी से भाग सकता था, आखिर में उसे वापस देश में तो लौटना ही था।
चारों तरफ से जो आलोचना हो रही थी और देश और विदेशों में उस अधिकारी की जो थू थू रही थी उससे बचने का केवल एक ही उपाय था की ट्रेफिक लाईट को सही किया जाया अब मरता क्या ना करता आख़िरकार ना चाहते हुए भी उसे वो ट्रेफिक लाईट ठीक करने के आदेश जारी करने ही पड़े।
एक औरत की जिद्द और पूरे देश से उसे मिले सर्मथन के आगे वो अधिकारी हार गया और वो बहादुर शेरनी जीत गयी।
अब वो घमंडी अधिकारी ये कैसे स्वीकार कर सकता था की लोग ये कहे की एक औरत ने उस अधिकारी को आखिर झुका ही दिया तो इससे बचने के वो अधिकारी और उसके कुछ चापलूस चारों तरफ ये कहने लग गए की देखो हमारे साहब ने आपके मोहल्ले की बत्ती ठीक करने के आदेश दे दिए है।
“बलात्कार-मृत्यदंड के प्रावधान का श्रेय लेने की से इसका कोई लिंक नहीं है ।"
#DeathForChildRapists