कुछ दिनों पहले कांग्रेस कार्यकर्ताओ की राष्ट्रीय बैठक में राहुल गांधी ने भरी सभा में भारत के प्रधानमन्त्री जो की कांग्रेस के ही है के सामने बड़े जोर से बोलते हुए कहा कांग्रेस को 9 नहीं 12 सिलेंडर चाहिए, 9 में काम नहीं चलता है !
केवल एक बार ये कहा, और ये लो कांग्रेस सरकार ने आज इसे मंजूरी दे दी तुरंत प्रभाव से 9 की जगह 12 सिलेंडर दिए जाये, अब सभी कांग्रेस के लोग इसका गुणगान कर रहे है की राहुल जी ने ये मुद्दा उठाया भारत की जनता के हक़ में और भारत की महिलाओ को 9 की जगह 12 सिलेंडर दिलाये !
वाह क्या जोरदार तमाशा बनाया है, सरकार किसकी है भाई? क्या भारत में अब भी किसी को नहीं पता की भारत सरकार में वही होता है जो सोनिया गांधी चाहती है, तो फिर जरुरत ही क्यों आयी की पहले लो भरी जनता में आप ये कहे और फिर उसके कुछ दिन बाद इस नाटक को असली जामा पहनाने की नकली कोशिश करे, आपको ही तो करना था तो फिर मांग किससे की? खुद मांग करते है वो भी खुद से ही?
फिर सवाल एक और खड़ा होता है क्या भारत की जनता की आवाज केवल तभी सुनी जायेगी जब राहुल गांधी वो मुद्दा उठाएंगे वरना किसी की नहीं सुनी जायेगी? सारा देश लोकपाल के लिए सड़क पर उतरा था लेकिन वो नहीं सूना गया और केवल एक राहुलजी ने कह दिया की 9 नहीं 12 सिलेंडर चाहिए तुरंत घोषणा भी हो गयी!
पूरी कांग्रेस ने मिलकर भ्रष्टाचारी नेताओ वाला अध्यादेश पारित किया था, और फिर राहुलजी ने उसे फाड़ दिया तो वो अध्यादेश वापस ले लिया गया, वाह यानि इस देश में केवल राहुलजी कहेंगे वो ही होगा?
अभी थोड़े दिन पहले संजय निरुपमजी ने मुम्बई में बिजली की दरो को कम कराने के लिए अनशन किया था, बेचारे वो तो भूखे भी रहे, उनके साथ पार्टी के अन्य कार्यकर्ता भी थे, अनशन से पहले उन्होंने सरकार से आग्रह भी किया था की बिजली की रेट कम की जाए, आम आदमी के लिए ये रेट बहुत ज्यादा है लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी और संजय निरुपंजी को अपना अनशन केवल एक भरोसे के सहारे तोड़ना पड़ा, वो बिजली दरे कम नहीं हुयी क्योंकि ये मुद्दा राहुलजी ने नहीं उठाया? क्या हम यहाँ तक आ पहुंचे की इस देश में अब किसी की नहीं चलेगी केवल और केवल राहुल गांधी की चलेगी?
क्यों किसी और की बात को कभी महत्व नहीं दिया जाता, चाहे वो आम जनता हो या फिर स्वयं कांग्रेस पार्टी के ही बड़े बड़े नेता?
हमे एक बार सोचने की फिर से जरुरत है, कही हम फिर से गुलाम तो नहीं हो गए है किसी एक घराने के? जिसमे हमे अपनी हर बात मनवाने के लिए घराने के किसी आदमी द्वारा ही कहलाना पडेगा?
खैर अपनी अपनी सोच है, अपना अपना नजरिया है मुझे इस सारे प्रकरण में दिखायी दिया वो आप सभी के साथ सांझा कर दिया
देश को किसी घराने का गुलाम बनाने के जिम्मेदार कौन है??
हम अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते, हमे ये स्वीकार करना होगा की इसके जिम्मेदार कोई और नहीं केवल और केवल हम है तो क्यों ना अपनी जिम्मेदारी निभाये और देश को इस गुलामी से आजाद कराये!
वंदे मातरम
भारत माता की जय
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